Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 266
________________ २५७ इक्काणवइमो संधि घत्ता जिवं अद्ध-रत्ते पडिवण्णए वइरिहिं सीसई आणियइं। जिवं कल्लए वंधव-लोएहिं दिण्णइं अम्हहं पाणियई। ८ परमेसर महि-परमेसरेण महु पट्ठ वद्ध चक्केसरेण विक्खेउ दिण्णु वलु अप्पणउ स-रहु स-वाहु सवारणउ(?) मोत्तिय-पवाल-माला-फुरिउ णिय-जाणु णरेदें पट्टविउ चडु कुरुवइ पेक्खंतहो जणहो घरु गम्मउ पत्थिव पत्थिवहो दुजोहणु पभणइ तुट्ठ-मणु छुडु सामि वइरु गुरु-वइरु हणु हउ गयउ जाहि तुहुं तुरिउ तहिं तव-णंदण-दूसावासु जहिं जो वद्ध पट्ट मगहाहिवेण सो मइ-मि विवद्ध कुरु-पत्थिवेण गउ आसत्थामु ण कहि-मि थिउ किव-भोएहिं कउरव-णाहु णिउ घत्ता सो महि-तिखंड-परिपालेण पिय-पुव्वेहिं सम्माणियउ। लक्खिज्जइ सुहु जीवंतेण णिय-विणासु णं आणियउ॥ [८] उत्तम-सल्लेहण-मरण-मइ वोल्लाविउ कुरुव-णराहिवइ धयरट्ठ-पुत्त एत्तिउ भणमि स-दसारुह णंद-गोव हणमि तुहं जेहिं हणाविउ जेहिं हउ रणे ताह-मि तेहि-मि करमि खउ रक्खंति जइ-वि जम-वइसवण खंदेंद-चंद-हुयवह-पवण ओए-वि अवर-वि रक्खंति जइ दक्खवमि तो-वि अवसाण-गइ यह पाविवि(?) किव-कियवम्म गय सोवण्ण-वसह सोवण्ण-धय जहिं वाहिणि गुरु-तणयहो तणिय सिल-धोय-समुज्जल-पहरणिय ते तिण्णि-वि तहिं एक्कहिं मिलिय णं काल-कयंत-मित्त मिलिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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