Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 277
________________ रिट्ठणे मिचरिउ २६८ घत्ता चक्काहिव-पडिचक्काहिवइ वावरंति लद्धावसर। णिवडंति झत्ति णिग्घाय जिह णहयल-भरिउव्वरिय सर ।। [१५] विहि-मि सरेहिं णहंगणु छाइउ कह-वि कह वि सुर-सेण्णु ण घाइउ कह-वि कह-वि रवि रहवरु खंचइ वंतु वाउ वाएवउ वंचइ तेहिं पडंतेहिं वणियइं सेण्णइं रहवर-जोह-तुरंग-वरेण्णई तेहिं पंडतेहिं फुडिय वसुंधर तेहिं पंडतेहिं पडिय धराधर तेहि पंडतेहिं भिण्ण भुवंगम आवय पाविय थावर जंगम तेहिं पंडतेहिं भरिय दियंतर तेहिं पंडतेहिं सोसिय सायर तेहिं पडतेहिं जणवउ घोसइ णउ जाणहुं किह एवंहिं होसइ ता उप्पण्णु कसाउ णरिंदहो मुक्कु भुवंगमत्थु गोविंदहो घत्ता धणु-गुण-वम्मीय-विणिग्गयई विसहर-लक्खइं धाइयई। उप्फड-फुक्कार-भयंकरइं . जले थले गयणे ण माइयइं॥ ९ ४ तो गोविंदें गोविस-कंधहो जायइं गरुयइं गरुड-सहासई तिल-तुस-मेत्तु-विसुण्ण ण तेत्तहो खगवइ खज्जमाणु पारक्कउ पायवत्थु पत्थिवेण विसज्जिउ वारुणु मागहेण परिपेसिउ माहिहरत्थु महिहरेण पमेल्लिउ तामसत्थु दिणयरेण विणासिउ पेसिउ गारुडत्थु जरसंधहो परिपिहियइं जल-थल-आयासई णाय ण णाय आय गय केत्तहो पाडिय-पडउ पणझुण थक्कर महुमहेण हुयवहेण परजिउ माहवेण वायवेण विहासिउ केसवेण कुलिसत्थे भेल्लिउ अवरें अवरु पवरु-विद्धंसिउ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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