Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 276
________________ २६७ दो-उत्तर-णवइमो संधि ४ घत्ता पण्णत्ति-पहावें पर-वलई सव्वइं भग्गइं पज्जुणेण। उवयार-सहासई णासियइं णावइ एक्के अवगुणेण ।। [१३] णिय-वले भज्जमाणे वलसारहं धाइय पवर कुमार कुमारहं ते जयलच्छि-सुरंगण-लुद्धेहिं दुंदुहि-गय-कुमार-अणिरुद्धेहिं भाणु-सुभाणु-संव-पज्जुण्णेहिं चारु-जेट्ठ-उद्धएहिं सउण्णेहिं णिसढ-विओरह-जर-अंकूरेहिं किय-कलयलेहिं समाहय-तूरेहिं के-वि णिवद्ध के-वि संदाणिय के-वि भग्ग के-वि वसुह-पराणिय तहिं अवसरे अच्चंत-मयंधे पभणिउ णिय-सारहि जरसंधे वाहि वाहि रहु जउ तउ तूरइं कण्ण-कंदरोयर-पडिपूरई वाहि वाहि तुहुं जउ तउ छत्तई जंदगोव-पज्जुण्णइं पत्तई घत्ता वयणु सुणेवि चक्काहिवहो उहय-कराहय-हय-पवरु। रहु वाहिउ सूएं णवरु तहिं जहिं हलहरु सारंग-धरु ।। [१४] भिडिय वे-वि पडिकेसव-केसव आसग्गीव-तिविट्ठ णरेस व रावण-रामाणूण धणुद्धर सुरवइ गयविलास विसकंधर दुद्दम देह दुइ-वि दुरइक्कम कारण-वारण-वारण-विक्कम दुसह-दिणमणि-दित्त-समुज्जल भासुर-भुअ-भुअंग-भुयग्गल दिण्ण-तूर-परिवड्डिय-मलहर णं उत्थरिय स-जल णव-जलहर अरिगण-पहरण-पहर-किणंकिय सायकुंभ-सण्णाह-अलंकिय रहवर-भर-भारिय-वीसंभर सरवर-णियर-भरिय-वसुहंवर मउड-पहोहामिय-रवि-मंडल चंद-सूरप्पह-जिय-मणि-कुडंल ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 274 275 276 277 278 279 280 281 282