Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 278
________________ २६९ दो-उत्तर-णवइमो संधि घत्ता ४ । ८ णीसेसई अत्थई मुक्काइं एक्कु सरासणु णउ मुअइ। अवसाणे काले सव्वहो णरहो धम्महो उप्परि होइ मइ ।। [१७] पवलामलवल-वल-वलवंतें लयउ अणंतेहिं सरेहिं अणंतें पेक्खंतहो पवरामर-सत्थहो कह व कह व धणु पाडिउ हत्थहो छिण्णु महारहु सारहि घाइउ असिवरु फरु फेरंतु पधाइउ खंडिय ते-वि वे-वि विहिं वाणेहिं कुलिस-दंड-जम-दंड-समाणेहिं लइय सत्ति सहस त्ति विसज्जिय तिहिं भल्लेहिं भदिएण परज्जिय मुक्क महागय गय गयण धरेवि ण सक्किय केण-वि जोद्धे अरिगण-घण-पहरणेहिंण भग्गी कह-वि कह-वि केसवहो ण लग्गी पज्जुण्णेण पण्णत्तिय-पाणे किय सय-खंडई हणेवि किवाणे मागहेण अगणिय-पडिवक्खें लइउ महा-रहंगु सविलक्खें घत्ता तं चक्क-रयणु चक्काहिवेण दारुणु दाहिण-करे कियउ। अत्थइरिहे मत्थए अत्थवणे दिणयर-विंवु णाई थियउ ।। [१८] तं चक्कवइ-चक्कु चमु-चक्खणु जक्ख-सहासु जासु परिरक्खणु दस-सयारु वहु-वारु सिला-सिउ । गंध-धूव-वहु-कुसुमेहिं वासिउ मुक्कु ति-खंड-पिहिवि-परिपालें णं खय-काल-चक्कु खय-कालें धाइउ थरहरंतु आयासें अमर परिट्ठिय एक्के पासें धरिउ ण णर-णारायण-वाणेहिं णउ मद्दीसुअ-कोंत-किवाणेहिं णउ पवणंगय-वर-गय-घाएहिं णउ हलहर-हल-मुसल-णिवाएहिं णउ मयरद्धय-पमुह-कुमारेहिं णउ पहरणेहिं सिला-सिय-धारेहिं सव्वेहिं धरेवि ण सक्किउ एंतउ हरि-करे लग्गु ति-भामरि देंतउ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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