Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 279
________________ रिट्ठणेमिचरिउ २७० घत्ता परिणयणे कुमारी-रयणु जिह ढुक्कु चक्कु केसव-करहो। जं जेण दिण्णु जं जेण किउ तं तहो सइं जेपइ घरहो(?) । [१९] जं उप्पण्णु चक्कु गोविंदहो तं परिओसु पड्दिउ इंदहो णच्चिउ णारउ दुंदुहि ताडिउ कुसुम-वासु केसव-सिरे पाडिउ वुच्चइ सरहसेण वलएवं मागह जाहि काइं अवलेवें अजु-वि खमइ वीरु करि वयणइं देहि ति-खंड पिहिवि णिहि-रयणइं ४ दोच्छिउ पत्थिवेण ण-वि थक्के कवणु गहणु महु एक्के चक्कें सीहहो कइ सहाय किर काणणे तो-वि मरंति दंति तहो आणणे मुए मुए गंदगोव किं अच्छहि तो णियय-णिहेलणु गच्छहि झत्ति पलित्तु णवर गरुडासणु णं घिय-धारए सित्तु हुवासणु घत्ता केसवेण लेवि पडिकेसवहो चक्क-रयणु रयणग्घविउ । अत्थइरिहे उयय-महीहरेण सूर-विवु णं पट्टविउ॥ [२०] धाइउ चक्क-रयणु रयणुज्जुलु तेओहामिय-दिणमणि-मंडलु जाला-मालालिंगिय-सुरवरु णिय-पडिरव-पूरिय-भुअणोयरु महि-कारणे रणे किय पडिवंधे धरेवि ण सक्किउ तं जरसंधे णिवडिउ विप्फुरमाणु थणंतरे विजुल-वलउ णाई गिरि-कंदरे ४ पहु ओणल्लु रहंगहो घाएं णं णग्गोहु भग्गु दुव्वाएं णं आयासहो पडिउ दिवायरु णं परिसोसहो गउ स्यणायरु तो अणेय उप्पाय समुट्ठिय णिप्पह चंदाइच्च परिट्ठिय कंपिय धरणि धराधर डोल्लिय णरवर माया-रुहिर-जलोल्लिय ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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