Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 275
________________ रिट्ठणे मिचरिउ २६६ घत्ता वइसारिउ कुंजर समर-मुहे कह-वि ण कालजमणु पडिउ। उप्पएवि णहंगणे णं घणेण करणे कंचण-रहे चडिउ।। वाहिउ रहु पर-वलहो रउद्दहो मंदरु भमइ व मज्झे समुद्दहो पंचहिं पंचहिं सव्व परज्जिय तेहि-मि दस दस तासु विसज्जिय तेण-वि वीस वीस आमेल्लिय तेहि-मि तीसहिं तीसहिं भेल्लिय तेण-वि सट्टि सट्ठि सरलाइय तेहि-मि तासु तुरंगम घाइय तेण-वि ताहे महद्धय ताडिय तेहि-मि तासु सूअ-रह पाडिय स-फरु स-मंडलगु उद्धाइउ णं दइवेण दवाणलु लाइउ सारणेण सो एंतु पडिक्खिउ जाउ महाहउ अमरे णिरिक्खिउ भिडियभंतर-वाहिर-मग्गेहिं विहि-मि परोप्परु तच्छिउ खग्गेहिं ८ घत्ता तो लद्धावसरे सारणेण कालजमणु जम-सयणु णिउ। जय-तूरई दिण्णइं जायवेहिं कलयलु देवेहिं गयणे किउ ।। [१२] कालें कालजमणु जं कडिउ हरि-वल-वले परिओसु पवडिउ तो तिखंड-महिमंडल-पालें सुय-विओय-घुम्मविय-णिडालें सव्वई साहणाई पट्ठवियई ताइ-मि पज्जुणेण णिट्ठवियई वाणर गिरि-पमाण उप्पाइय किलिगिलंत खायंत पधाइय अण्णेत्तहे-वि विसम महाफणि फुप्फुवंत-विप्फुरिय-फणामणि सरह-वराह-महिस-विस-भीयर वग्घ-मइंद-रिक्ख-रयणीयर भमर-रिट्ठ-सलहुंदुरइत्तिउ मक्कुण-दंस-मसय-घुण-लित्तउ अण्णेत्तहे सवाहु वइसाणरु धूलि-तमंधयारु घण-डंवरु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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