Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 274
________________ २६५ दो-उत्तर-णवइमो संधि घत्ता स-सरासणु पेसिय-सर-णियरु धाइउ उप्परि जलहरहो। धाराहरु धाराधारयरु णं हिमवंत-महीहरहो॥ तओ महा-करेणुणा मयंवु-सित्त-रेणुणा कयंत-रूव-धारिणा सुगंध-गंधि-धारिणा पडीभ-कुंभ-मद्दिणा विसाल-णालि-अद्दिणा मयाणियालि-पंतिणा जियामरिंद-दंतिणा करग्गच्छत्त-भाणुणा खयायवच्च-थाणुणा सयामयालसच्छिणा जियारि-राय-लच्छिणा असंत-कण्ण-वाउणा सहासहाय-णाउणा मणप्पहंजणासुणा जियारि-साहणासुणा घत्ता णहर-दसण-पुच्छाउहेहिं जगडिउ जायव-णाह-वलु। तं तिण-समु मण्णे-वि सीहु जिह णवर परिट्ठिउ एक्क-वलु। [१०] तो संकरिसणेण किय-थाणे विद्ध महाकरि एक्के वाणे विहि णारायणेण णाराएहिं अप्पासंग-भुअंग-णिराएहिं तिहिं सिणि-णंदणेण उवढुक्के सव्वें थूणाकण्ण-चउक्के पंचहि तोमरेहिं अणिरुद्धे छहिं तोलिएहिं मजरेण(?) विरुद्ध सत्तेहिं गुरुहिं विओरह-णामें अट्ठ वराहकण्ण सइकामें णव कण्णिय तव-सुएण सुधीमें वच्छदंत दस पेसिय भीमें एयारह वइहत्थि पयत्थे वारह भल्ल गए णर-हत्थें तेरह तीरिय भाणुकुमारें विद्ध असेसें खंधावारें ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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