Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 272
________________ २६३ घत्ता किं भग्गु पाउण कंस - वहे अच्छंतेहिं दिवसे दिवायरहो [4] किया वयाई एवं चवंताई जम - घोरणा - घोर - णिग्घोस - तूराइं मयरहर - गिरि- कुम्म ओहट्टणाई व विज्जुल्लया पडण- पवियंभणाई व भंभंत भंभोह-भंकार - भीमाई दडडडदडताई दs - दगडि-घोसेहिं झिमिझिमिझिमंताइं झिक्किरि - विलासेहिं हूहूहुवंताई सय-संख - सद्देहिं डमडमडमंताई डमरु - वमालेहिं ढढढढढढताई ढड्डिय- णिणाएहिं घत्ता तं तेहउ तूर - सद्दु सुणेवि णं वण-दउ उप्पर महिहरहो --- [६] पचलई हरि-वल- वलई विरुद्ध किय- कलयलाई दिण्ण-वाइत्तइं विरइय- वइरि - वूह - पडिवूहइं उज्झिय-धयइं लइय-तणु-ताणइं दूर- वरुज्झिय-रण-भर - पसरई अवहत्थिय-णिय- पुत्त - कलत्तई रणवहु-अंगालिंगण-लोलई Jain Education International अम्हहिं विहिं णारायणहो । कवणु तेउ तारायणहो । दो - उत्तर - णवइमो संधि तो तेण देवाविया वायणंताई दस - दिसिवहब्भंतरालाण पूराई उप्पाय- णिग्घाय-आवेट्टणाई व गज्जंत- घण- पाउसारंभणाई व उं अं- हुडुक्का-परिछित्ति- धीमाई घुमुघुमुघुमंताई घुम्मुक्क-कोसेहिं खुमुखमुखुमंताई खुंखुण-सहासेहिं धूधूधुवंताई काहल - णिणद्देहिं सलसलसलंताई कंसाल-तालेहिं एएहिं अवरेहिं अण्णण्ण- घाएहिं रण-रसु कहि-मिण माइउ । हरि जरसंधहो धाइयउ || For Private & Personal Use Only ९ ४ ८ जय - सिरि-तियस - विलासिणि-लुद्धइं पहु- पसाय-रिण- फेडण- चित्तई चोइय-रह-गय-तुरय-समूहइं कर - कड्डिय- वाणासण- वाणइं मरण-मणोरह-लद्धावसरई वसुह-वरंगण - गहण - पसत्तइं जल - वोलीण - वहल-हलवोलाइं ११ ४ www.jainelibrary.org

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