Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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दो-उत्तर-णवइमो संधि
कुरु-पंडव-वलेहिं सम्मत्तेहिं रण-रस-रहस-पसाहणई। आभिट्टई उत्तर-दाहिणई मागह-माहव-साहणइं॥
अट्ठारहम्मि दिवसे वोलीणए कुरु-वले णिरवसेसे परिखीणए पाडिए सव्व-भउमि दुजोहणे परिसमत्ते पंचालाओहणे तुसिउ मइंदु जेम गय-गंधे ताडिय समर-भेरि जरसंधे हत्थु उत्थल्लिउ णरवर-विंदहं पारय-दरय-कुणीर-कुणिंदहं कोंकण-तामलित्त-तोक्खारहं मागह-सूरसेण-गंधारहं पत्थल-मेहल-कोहड-जट्टई वव्वर-टक्क-कीर-खस-भोट्टई
ओड-पउंड-मुंड-ओवीरहं कइवय++-मरुव-कम्हीहं तुंडिएर-कालेरंवठ्ठह
कण्णावरण-पमुह-वहु-रट्ठहं
घत्ता णव कोडिउ पवर-तुरंगहं सोलह सहस गरेसरहं। चउरासी लक्खइं रह-गयहं संख ण णावइ किंकरहं ।।
[२] कालजमण-वल-विक्कम-सारहं सय-सहसइं णिग्गयइं कुमारहं अलमल-वल-भरिया सारंधे वूहई विरइयाइं जरसंधे सेणावइ करेवि गुरु-णंदणु सुरेहिं समाणु णाई सकंदणु रण-रहसुब्भडु कहि-मि ण माइउ णं उत्तर-मयरहरु पधाइउ तं सयडिंव-भएहिं तो वुच्चइ किं ति-खंड वसुमइ ण पहुच्चइ वासुएव-वलएवहं लग्गहिं गयमणि पंचयण्णु धणु मग्गहिं किजउ संधि काई संगामें दुल्लह होइ जयंगण णामें किं वसुएव इढि ण णिहालिय रोहिणि जइय मंड उद्दालिय
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