Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 268
________________ २५९ इक्काणवइमो संधि घत्ता वलु घाएवि हुयवहु लाएवि सिरई लएप्पिणु णीसरइ। वाहिय-रहु पुण्ण-मणोरहु घरु जरसंधहो पइसरइ॥ [११] कुरु-जंगल-परिपालण-मणहो अग्गए खिवियई दुजोहणहो परमेसरु करि वद्धावणउं णिरवज्जु रज्जु लइ अप्पणउं सीहासणु छत्तइं-चामरइं उवसमियइं सव्वइं डामरइं उब्भावहि मणिमय-मंडविय किय सयल पुहवि णिप्पंडविय पंचह-मि सिरइं मई तोडियइं सुर-गिरि-सिहराइं व मोडियइं पेक्खेप्पिणु कुरुव-राउ भणइ को गुरुसुव पंडु-पुत्त हणइ अवरेहि-मि जेण णिरत्थ किय गंगेय-कण्ण-दोणहिंण जिय एयई पुणु कलुण-जणेराई सीसहं पंचालह केराई घत्ता हउं एक्के पवणहो पुत्तेण लउडि-पहारेहिं चूरिउ। को पंच-वि हणइ रणंगणे जाम ण हरि सर-पूरिउ । [१२] दुजोहणु एम चवंतु थिउ गुरु-तणयहो धिद्धिक्कारु किउ वद्धारिय-जय-जय-मंडवहं जाणाविउ केण-वि पंडवहं तव-तणयहो भीमहो अज्जुणहो । अणिरुद्धहो संवहो पज्जुणहो हलहरहो अणंतहो सच्चइहे गय-घाय णिएविणु कुरुवइहे सेणावइ आसत्थामु थिउ विक्खेउ णरिंदें पट्टविउ विद्दाविउ तेण सयलु सिमिरु सो ण भडु ण तोडिउ जासु सिरु धट्ठज्जुणु सवलु सिहंडि मुउ गुरु-सामिय-परिहव-पट्ट धुउ सोमय-सिंजयह-मि करेवि खउ पंचालहं सीसइं खुडेवि गउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282