Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 269
________________ रिठ्ठणे मिचरिउ २६० घत्ता उव्वरिउ ण को-वि जियंतउ कह-वि कह-वि सोयाउरई। कंदंतइं धाह मुवंतइं पर चुक्कई अंतेउरई ॥ _ [१३] तं वयणु सुणेवि असुहावणउं गोविंदें किउ वद्धावणउं जइ अम्हहं सत्त-वि तेत्थु थिय आमिसहो रासि तो आसि किय तव-णंदणु पभणइ णिएवि मुहु लइ णच्चहि अम्हहं कवणु सुहु तो भायर इयर चयारि जण उद्धाइय अमरिस-कुइय-मण भीमज्जुण गय-गंडीव-धर सहएव-णउल असि-कुंत-कर णारायणेण पडिवंधु किउ सब्भावें अग्गए गंपि थिउ जइ जीविउ लेमिण मागहहो पइसरमि मज्झे तो हुयवहहो पत्थेण वुत्तु एत्तिउ करमि गुरु-सुयहो सिहा-मणि अवहरमि घत्ता पइज्जावसाणे किउ कलयलु तूरइं हयई पयट्ट पहु। गय रयणि दिवायरु उग्गमिउ ताम सयं भूसंतु णहु॥ ८ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए। पंडव-वल-पलयकरो इक्काणवइमो सग्गो॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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