Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
रिट्ठणे मिचरिउ
२५८
घत्ता किउ कलयलु दिण्णइं तूरइं छुडु परिणमिय-महावलहो। चउ-पासेहिं मागह-लोएण वेढिउ सिमिरु जुहिट्ठिलहो।
४
गुरु-कुरुवइ-रवियर-तावियउ दुजोहण-परिहव-परिहविउ स-कसाउ स-कवउ स-पहरणउ । साहारु ण वंधइ गुरु-तणउ किव-कियवम्महं वारंताहं मागहहं णियंत-णियंताहं पर-वले पइसरइ पलंव-भुउ अरि-सत्थु पयत्थु भयत्थु हुउ लग्गइ ण हेइ एक्कहो-वि करे सण्णाहु ण पावइ णिद्द-भरे परिचिंतिउ मणे धट्ठज्जुणेण पहरंतउ दिछु ण अज्जुणेण तहिं अवसरे दिव्बु समुट्ठियउ गिरि-सिहरागार-परिट्ठियउ पज्जलिय-जलण-जाला-वयणु खय-चंदाइच्च-हित्त-णयणु
घत्ता पहरंतहो आसत्थामहो दुद्दम-देह-वियारणइं। जिह णइवइ णिय-णइ-णीरई गिलइ असेसई पहरणइं॥
[१०] दोणायणेण तो संभरिय
णामेण विज माहेसरिय फणि-फड-फुक्कार-भयंकरिय उडुवइ-कड-जूडालंकरिय डमरुव-रव-भरिय-दियंतरिय फुरियाहर-विसम-विलोयणिय +++++++++++++++ सूलाउह-गो-विस-वाहणिय ता पेक्खेवि सहसुप्पण्ण-भउ ओसरेवि दिव्वु केत्तहि-वि गउ गुरु-णंदणु पर-वले पइसरइ तं मारमि जो पहरणु धरइ रह चूरइ करि-कुंभई दलइ हय हणइ णराहिव दरमलइ धय-चामर-छत्तई मोडियइं पंचालहं सीसई तोडियई
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282