Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 265
________________ रिट्ठणेमिचरिउ २५६ घत्ता ताव चक्काहिवेण स-हत्थेण पट्ट वद्ध गुरु-णंदणहो। सेणावइ होहि महारउ उप्परि जाहि जणद्दणहो । ४ गुरु-तणयहो दिण्णइं साहणइं रह-माणुस-घोडा-साहणई कालायस-कंस-कवय-धरई पहरण-पब्भार-भयंकरई दुग्गंधई धूम-समप्पहई रिक्खंकई रिक्ख-महारहई गो-महिय भवइ कुसासिरइं खर-केस-तुरंग-केस-सिरई णित्तिंसई रोमु सप्पु खुसई लंवोट्ठ(?)-दंतुर-पट्टिसई कण्णथियावरिया भणई ओयई अवराइ-मि साहणाई दस सहस गइंदहं मत्ताहं किंकरहं कोडि पहरंताहं हयवरहं लक्खु रण-भर-सहहं पंचास सहास महारहहं घत्ता तो दीसइ आसत्थामेण कुरुव-णाहु विहलंघलउ। पंडवेहिं णिवंधेवि छंडिउ णाई कसायहो पोट्टलउ॥ पभणिउ गुरु-सुएण रुअंतएण तुहुं देव देव तुहुं वंधु-जणु पइं होतें धण-धण्णइं वहलई पइं होतें धयइं महत्तरई पई होतें अम्हहुं एहु किय उवयारहो तहो एत्तिउ करमि जिवं अवसरु सारिउ तुहुं तणउ जिवं तुडं वइसारिउ वइसणए वहु-धाह-पवाह-मुवंतएण तुहुं गुरु तुहुं सामिउ तुहुँ सरणु मणि-कंचण-रयणइं केवलई वाइत्तइं छत्तइं चामरइं वंभणहं कहि-मि किं राय-सिय जिवं पंडव मारमि जिवं मरमि जिवं गउ णिय-तायहो पाहुणउ जिवं अप्पउ दढ हुवासणए ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282