Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 263
________________ इक्काणवइमो संधि कियवम्म-किवासत्थामेहिं दुजोहणु चूरिउ भीमेण कहिउ ताम चक्केसरहो। जिवं पहरहुं जिवं ओसरहुं ।। ४ । तो अट्ठारहमउ दिवसु गउ जगु गिलेवि णाई थिउ णिसि-समउ धयरट्टे संजउ पेसियउ दुज्जोहणु तेण गवेसियउ रण-रंगे लुलंतु णिहालियउ णं सुरवइ सग्गहो ढालियउ णं गहवइ गह-मुह-गाह-हउ णं दिणमणि सीयल-भाव-गउ णं काणणु दहेवि दवग्गि थिउ णं सोसहो पारावारु णिउ णं भग्ग-सिंगु गिव्वाण-गिरि कमलायरु णं ओसरिय-सिरि णं पवण-पणोल्लिउ साल-तरु णं सीह-विहट्ठिउ करि-पवरु णं विसहरु तक्ख-पक्ख-झडिउ तिह दीसइ कुरुव-राउ पडिउ घत्ता जो पंडु-सुयह मगंतहं पंच-वि गाम ण दिण्ण चिरु। सो पेक्खु कम्म-विहि-छंदेण लुलइ धूलि-धूसरिय-सिरु॥ [२] एहिय अवत्थ कुरुवइहे जहिं । सामण्णहो किण्ण म होउ तहिं कर-कमल-कयंजलि विण्णवइ हउं संजउ कुरुव-णराहिवइ पट्टविउ आसि जो वारवइ जसु केरी केण-वि ण किय मइ अट्ठारह वासर जुज्झियइं जहिं अवसरे सउणि-णिरुज्झियइं तहिं अवसरे गयउर-णयरु गउ पडिवउ आइउ वत्तावरउ धयरट्ठ भडारा धुउ मरइ । जच्चंधु अयंगमु किं करइ गंधारि स-दुक्ख-भारु रुवइ भाणुवइ अगाह धाह मुवइ अंतेउरु मुच्छागय-विहलु परियणहो ण थक्कइ अंसु-जलु ४ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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