Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 264
________________ इक्काणवइमो संधि घत्ता जगे सव्वहो डाहु महंतउ तुह मुह-दसण-वज्जियहो। पर एक्कहो दिहि दुजोहण पंडव-वलहो अलज्जियहो। ४ । दुजोहणु पभणइ माण-गिरि णंदउ म जुहिट्ठिलु लद्ध-सिरि जसु वणु हिंडंतहो कालु गउ सिविणे-वि ण जाणिउ सोक्खु कउ तहो णामु म लेहि अलज्जियहो पिसुणहो परिवाडि-विवज्जियहो मई दीणाणाहहं दिण्णु धणु परिपालिउ सयलु-वि वंधु-जणु संतणु विचित्तुवीरिउ अवहि ण जियतें दाइहिं दिण्ण महि एवहिं जगे अवर ण का-वि धर अच्छइ मरिएवउ एक्कु पर जं तो-वि सरीर-चाउ ण किउ तं दोण-पुत्तु स-पइज्जु थिउ सो एवहिं पेक्खहुं किं करइ किय पंडव मारइ किय मरइ घत्ता जरसंधु अद्ध-भरहाहिवइ करयले चक्क-रयणु धरइ। सहुं वासुएव-वलएवेहिं पेक्खहुं रण-मुहे किं करइ ।। [४] तहिं काले कालणग्गोह-वणे पारोह-साह-फल-पत्त-घणे कियवम्म-किवासत्थाम थिय कउसिएण ताम तहिं खयहो णिय दस-सहस णिवण्णहं वायसहं णिद्दालस-भाव-परव्वसहं लद्धोवएस खर-वासरहो गय तिण्णि-वि घरे चक्केसरहो जाणाविउ कुरुव-राउ पडिउ स-महारहु भारहु णिव्वडिउ सम्माणहिं ताम जाम जियइ सो कासु-वि पासे ण अल्लियइ विक्खेवु देव महु पंडवेहिं किय किंकर णर सुर पट्टवेहिं तिह करि जिह जणण-वइरु हणमि रिउ-तरुवर-मूल-जालु खणमि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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