Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 261
________________ रिट्ठणे मिचरिउ २५२ घत्ता किं वहु-वाय-वित्थरेण एत्तिउ परमत्थु महंतु। खज्जइ माणुसु माणुसेण जइ जिण-धम्मु ण होतु ॥ जीवें धम्म एम मंतेवउ वोहि-समाहि-लाहु चिंतेवउ जम्मे जम्मे महु मंगलगारउ होउ सामि अरहंतु भडारउ जम्मे जम्मे तव-दंसण-णाणइं संभवंतु सम्मत्त-पहाण जम्मे जम्मे मय-मोह-विणासणे णिम्मल-वुद्धि होउ जिण-सासणे ४ जम्मे जम्मे जिण-धम्मु लइज्जउ जम्मे जम्मे सुह-गइ पाविज्जउ जम्मे जम्मे अजरामर-थत्तिउ संभवंतु जिण-गुण-संपत्तिउ जम्मे जम्मे संसारुत्तरण संभवंतु सल्लेहण-मरणइं जम्मे जम्मे अवहत्थिय-दुक्खइं संभवंतु कम्म-क्खय-सोक्खई . घत्ता अवयरणाहिसेय-समए णिक्खवणे णाणे णिव्वाणे। जाइं जिणिंदहं मंगलई महु ताइं होंतु अवसाणे। [१८] कहेवि एव वारह अणुपेहउ पभणइ णव-घण-सामल-देहउ लंवइ सूर-विंवु आयासहो जामि भडारिए णिय-आवासहो अच्छइ दोण-पुत्तु स-पइज्जउ माण-वडेंसइ कहि-मि स-तिज्जउ दुक्ख-पमुक्कए उत्तउ णारिए ता आसीस दिण्ण गंधारिए णंद वद्ध जय जाहि जणद्दण पालहि पंच-वि पंडुहे णंदण गउ गोविंदु पासे तव-तोयहो पेसणु दिण्णु णराहिव-लोयहो तुम्हहिं सव्वहिं एउ करेवउ सिविरु असेसु अजु रक्खेवउ मई वलएव-सामि अणुणेवउ खंधावारु सयलु रक्खेवउ चक्कु हरेवउ रज-मयंधहो परए भिडेवउ तहो जरसंधहो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282