Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२४५
घत्ता
कमल- णिहेलण कमल-कर कुरुव-णराहिवु परिहरेवि
[३]
कुरुवइ - कोसु असेसु लइज्जइ
खंडव - डामर वइरि-पुरंजय उतिण्णु तुरंतु पुरंदर - णंदणु हरि परिपुच्छिउ सिर- गिरि-धारा तो सब्भावें अक्खइ महुमहु कण्णु सहोयरु तिण्णि-वि पावई ड्ड तेहिं तव केरउ संदणु हउं हयासु गइ कवणु लहेसमि
घत्ता
वंधव लक्खई घाइयई एउ ण जाणमि दुम्मइहे
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[४]
जइ गंधारि रिसत्तणु दावइ णिरुवद्दव - परिपालिय- रट्ठहो तइयहं धाए णिवद्धइं णयणई तेण सइत्तगेण महु भावइ सउ पुत्तहं तो केर मारिउ दुद्दम-दाणव- देह - विमद्दण तिह करि जिह उवसमइ महत्तरि विणु कारणेण करेवि आओहणु
कमलाणण कमल - दलच्छि । संकमिय जुहिट्ठिले लच्छि ॥
तो णारायण वोल्लिज्जइ रह - सिहरहो ओयरहि धणंजय दड्नु हुआसणेण तो संदणु कोल इकाई भडारा जं माराविउ स - गुरु-पियामहु
थियइं दइव्वइं हुआसण - दावई
आसंकिउ मणेण तव-णंदणु
कवणुत्तरु णारइयहं देसमि
वलु
जीवि रज्जु असार । महु होस कि उत्तारु ॥
णवइमो संधि
तो अम्हहं एक्कु-विण पहावइ जयहं दिण्ण आसि धयरहो
पर
- पुरिसहं ण णिहालमि वयणइं जइ-विण डहइ तो-वि फलु दावइ जाहि हि होसइ भारिउ हत्थिणायपुरु जाहि जणद्दण को-वि दोसु पंडवहं ण उप्परि णिय-चरिएहिं पत्तु दुज्जोहणु
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し
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८
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