Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 255
________________ रिट्ठणे मिचरिउ २४६ घत्ता तुहु-मि भडारिए जाणहि पुणु पच्छए भीमज्जुणेहिं जो मग्गंतहं अद्धु ण दिण्णु । कुरुवइ तरु-वल्लरि जिम्व छिण्णु ॥ तं णिसुणेवि पय? जणद्दणु दारुएण ढोइज्जइ संदणु स-धउ स-चामरु सायववारुणु गिरि-गोवद्धण-धारण-धारणु तहिं आरूढु सुरिंद-विहोएं अम्मणुअंचिउ पंडव-लोएं णाहु णियत्तिउ पंकयणाहें रहु ओवाहिउ वाहा-वाहें गयणु पियंत जंति णं घोडा कंचण-संखल-पग्गल-तोडा णं वसुमइ ण छिवंत पधाइय हत्थिणायपुर-णयरु पराइय पट्टणु तेण दिडु विच्छाइउ दुक्खिउ दुम्मणु दीणु अणाहउ केस-विसंठुलु अविरल-वाहउ थामे थामे आमेल्लिय-धाहउ घत्ता जं मणु-पंडव-कउरवहं सव्वहं पुरवरहं पहाणु । गयउरु दिमु जणद्दणेण णं धूमायंतु मसाणु ॥ ४ रह-सिहरहो उत्तरेवि उविंदे पुणु गंधारि महत्तरि दिट्टी गंगा-सायर इव आउण्णई केम-वि उवसम-भावहो ढुक्कइ करेवि महत्तराण अहिवायणु । भणइ ण थत्ति देमि तुह सोयहो तुहं सु-णिमित्तु सु-मंगलु रट्ठहो वंधव-सयणहं तुहुँ गइ तुहुं मइ पुणु धयरडु दिङ गोविंदें हियए जाहे दुह-चडुलि पइट्ठी विण्णि-वि धरेवि परोप्परु रुण्णइं दुक्खु दुक्खु दुक्खेण विमुक्कइ दिण्णासणे णिविट्ठ णारायणु तुहुं अरक्खण-पाणिउ लोयहो सय-वडाय तुहुं धरे धयरट्ठहो तुहुं पंडवहं कोंति महु देवइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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