Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 253
________________ णवइमो संधि रण-सिरि-रामालिंगियउ कुरुवइ पडिउ-वि सुहावइ। देमि जियंतु ण पंडवहं थिउ पिहिवि धरेविणु णावइ॥ १ महुमहेण विणिवारिज्जंतु-वि भीमज्जुण जमले-वि णिजंतु-वि रुवइ जुहिट्ठिलु अंसु मुवंतउं अवगुण-गुण-वयणइं सुमरंतउ वंधउ जइ-वि सुङ कलियारउ मरणे देइ दुक्खु सय-वारउ जइ-वि कियई विस-जउहर-जूवई एवहिं ताइ-मि दूरीहूवई दुव्वयणाई कहि-मि णिसुणेसहुं णिय-संपयउ कसु दावेसहुँ कुरुव-णराहिवेण तो वुच्चइ कुसुम-वासु ण कवंधहो मुच्चइ किं णउ रुण्णएण अहो राणा जाहि जाहि मं मरहि अयाणा जइ जीवमि तो पंच-वि मारमि तेण हियत्तणेण विणिवारमि घत्ता मई दुजोहणे जीवियए तुम्हेहि-मि एत्तिउ कज्जु । जेण हणाविय ओरु महु तं माहउ मारमि अज्जु ॥ [२] गयई पंडु-वलई भंडागारई तुंगई गिरिवर-सिहारागारइं कंचण-मणि-रयणई अ-पमाणइं हय-गय-रह-वाहण-जंपाणइं चामर-पुंडरीय-धय-चिंधई विविहाउहइं विविक्क-णिसिद्धइं विविहासणइं विविह-वाइत्तई तंविय-रुप्पिय-कंचण-पत्तई गुड-पक्खर-सरीर-तणु-ताणइं। दूसावास-भिसिय-पल्लाणइं कंवल-पडिपावरण-सहासई चेलियाई णिय-णाम-पगासई दासी-दास महिस-गो-वंदई एमावरइ-मि णयणाणंदई लइ लइ पंडवेहिं जा तिण्णइं दुक्खिय-दीणाणाहहं दिण्णई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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