Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 200
________________ १९१ चउरासीइमो संधि [१७] धाइउ तवण-तोउ सेयासहो पाइं इंदु गय इंदब्भासहो रणु रउद्दु किउ असुर-सुरेहि व रहवरेहिं गंधव्वपुरेहिं व हयवरेहिं कलहंस-सवण्णेहिं चामर-छत्त-धएहिं सोवण्णेहिं समर-सएहिं सरीरावरणहिं संचरंति अब्भतर-करणहिं जिह ण दिवायरु दिसि संभालइ । जिह ण को-वि केत्तह- वि णिहालइ तिह महुसूयणेण स-कसाएं वहरि वरूहु समाहउ वाएं जिह पाविट्ठ पाव-भर-भारिउ हत्थ-पमाणु धरहे पइसारिउ वाहणु आउ सरीरु महाउहु दइवे परम्मुहे सव्वु परम्मुहु घत्ता रवि-सुयहो धरंत-धरंताहो चक्कइं थक्कइं धरणियले । णिसि-आगमे णाई णिव्वुड्डुइं रवि-ससि-विंवई उवहि-जले॥ [१८] तो सविलक्खें चंपाराएं पाडिउ णर-किरीडु णाराएं हरि पभणइ किं सेरउ अच्छहि वइरि-परक्कम किं ण णियच्छहि हणु हणु अज्जुणु वहु-वहु-वाणेहिं सत्तुत्तर-सय-धम्मत्थाणेहिं हणु हणु खंडव-डामर करणेहिं हणु हणु कालकंज-कप्परणेहिं हुणु हणु जालंधर-विद्दवणेहिं हणु हणु विद्धखत्त-णिव्वहणेहिं तो कइकेयणेण लल्लक्केहिं विद्ध वियत्तणु दसहिं पिसक्केहि पुणु छहिं पुणु पडिवारउ एक्के । देहावरणु भिण्णु अवरेक् रुहिरु पियंतु पत्तु महि-मंडलु रवि-सुउ तेण जाउ विहलंघलु ९ घत्ता घुम्मंतु णरेण ण विद्दविउ किं गुणु ण छिण्णु तउ णंदणहो धुणिउ अणंतें कर-जुयलु । जेण ण पाडहि सिर-कमलु ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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