Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२२५
अवासीइमो संधि णवर णराहिव णिद्दए भुत्तउ तेण महासरे पइसेवि सुत्तउ
पत्ता जा जाहि जुहिट्ठिल ताम तुहुं हउं णिविण्णु को णीसरउ। जइ तुम्हहं कारणु जुज्झिएण तो एक्केक्कउ पइसरउ ।
[दूवई] तव-सुय मंदबुद्धि दूसासण सरवरे कवण सुत्तहं ।
देहावरण-वूह-जल-दुग्गइं अग्गए रायउत्तहं ।। अप्पुणु पुणु कायरहं पहाणउ लक्खाहर-विवरेण पलाणउ थरहरंतु परिट्ठिउ सीमहो दाहिणे वाहु-दंडे थिउ भीमहो समर-काले कुप्पुरिसहं भजहि एवंहिं गलगज्जंतु ण लज्जहि हउं पुणु जइया संकमि पाणहं णर-णारायण-पेसिय-वाणहं जिवं तुम्हहं जिवं तुह सामंतह तो किं महि देमि मग्गंतहं सयण-विवज्जिएण सावजें होउ होउ महो करणे रज्जें तुहुं भुंजहि हउँ जामि तवोवणु अथिरु सरीरु धण्णु धणु जोव्वणु जर उत्थरइ कयंतु वियंभइ लग्गमि धम्मे जेण सुहु लब्भइ
घत्ता विहसेप्पिणु वुत्तु जुहिट्ठिलेण मं करि अवरु वियप्पणउं। जो धम्म सो जि हउं धम्म-सुउ महु जे समप्पहि अप्पणउं ।।
८
[दुवई जइ तुहुं असरणेण अथिरेण किलामिउ मणुय-जम्मणे।
णीसरु कुरुव-राय तो जुज्झहो विण्णि-वि खत्त-धम्मणे।। अच्छउ भीमु पत्थु सहुं जमलेहिं रणपिडु रमहुं णियय-सिर-कमलेहिं पभणइ कुरु-णरिंदु वहु-जाणउ तुहुं अम्हहं धयरट्ठ-समाणउ
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