Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 244
________________ २३५ णवासीइमो संधि ९ घत्ता वुच्चइ स-कसाएं कउरव-राएं संढहो खलहो अ-लज्जियहो। आढवियाओहणु हउंदुजोहणु किं वीहमि गल-गज्जियहो॥ [५] लइ लउडि विओयर देहि घाउ तुहं पंडु-पुत्तु हउं कुरुव-राउ जाणिज्जइ एवंहिं एत्थु काले गय-गरुय-घाय-घट्टण-वमाले एक्कल्लउ हउं तुम्हइं अणेय पई सहुं संचूरमि सयल एय धट्ठज्जुणु अज्जुणु धम्म-पुत्तु सच्चइ सिहंडि गोविंद-गुत्तु पवणंजउ पभणइ वासुएव गय-घाएहिं चूरिउ पेक्खु केवं तव-तणय सइत्तउ होहि अज्जु महु कित्ति-माल तुहुं भुंजि रज्जु आयहो दुणिमित्तई मउड-भंगु धूमंतु दिसउ कंपउ पयंगु थरहरउ वसुह गह-दुत्थु होउ मई कुद्धए कुरुहुंण जीव-लोउ ८ घत्ता कोवग्गि-पलित्ते मारण-चित्तें भीमें मणि-किरणुजलिय। उग्गिण्ण गयासणि जम-मण-तासणि फुरिय झत्ति णं विज्जुलिय॥ ९ गय भामिय भीमें धूधुवंति णं जलण-जालजलजलजलंति णं वइवस-सखल खलखलंति णं अब्भ-माल दडदडदडंति कुरुवेण-वि भामिउ लउडि-दंडु कंपाविउ महिअलु चालिय गिरिंद ओसरेवि परिट्ठिय दूरे रंगु दुजोहण-भीम महागएहिं णं भूक्खिय देवय भूभुवंति णंणाग-कण्ण चलचलचलंति णं काल-जीह ललललललंति णं जम-रुंचणि गडगडगडंति उड्डाविउ अमर-विमाण-संडु आलाणमुवाविय दिस-गइंद सो णत्थि ण जसु किउ दिट्ठि-भंगु उवसग्गु णाई किउ देवएहिं ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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