Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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रिट्ठणे मिचरिउ
आगारेहिं करणेहिं दुज्जोहण पूर
घत्ता
सुत्तावरणेहिं भीमु अपूरउ
[१५]
सामरिसस -पहरण सावलेव ओसारु दिति पडिउत्थरंति आगरिहिं दसहि-मि पइसरंति करण वत्तीस - वि दक्खवंति अट्ठहि-मि णिवंधेवि वंध लेिं उडुंति पडंति वलंत धंति तहिं अवसरे कुरु- परमेसरेण दढ - कढिण- पलंव-भुयग्गलेण
धत्ता
सव्वायामें
रण-रहसुद्दामें भीमो भीसावणि मण-संतावणि
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[१६]
जं संख - देसे गय- घाउ दिण्णु घुम्माविउ पाविउ परम मुच्छ उट्ठि रुहिरारुणु दुक्खु दुक्खु
दंडाह महा-फणिंदु उद्धार करि करिवरहो जेवं जा मेल्लिय लउडि विओयरेण पडिवारउ उप्परि दिण्णु घाउ उल्ललेवि ण सक्किउ णवर दूरु
वंधेवि घाएहिं गयहि रणे रणे । तेण विसूरइ पत्थु मणे |
रुहिरारुण फुल्ल-पलास जेवं णं मंदर विणि-वि परिभमंति सुत्तरं वारह-मिण वीसरंति णं सीस परोप्पर सिक्खवंति आहुट्ठेहिं घाएहिं घाय दिंति सरहस स - परीसह वीसमंति आडोहिय-वास - महासरेण पइसेवि अब्भंतर-मंडलेण
मेल्लिय लउड लोह-घडिय । णं खय - विज्जु जेम पडिय ॥
कुलिस-हाएं गिरि व भिण्णु चेयण-वि समागय तुच्छ तुच्छ णं कुसुमिउ रत्तासोय - रुक्खु तिण- समउ गणेप्पिणु कुरु- णरिंदु आसण परिट्ठिय सव्व देव सा वंचिय कुरु - परमेसरेण उप्पर हंगणे कुरुव-राउ णिवडतो आहय वेरिओरु
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