Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

Previous | Next

Page 11
________________ [10] का भी निर्देश करना होगा । जो कुछ अपभ्रंश साहित्य बच गया है उसमें से भी बहुत थोडा अंश अब तक प्रकाशित हो सका है। बहुत सी कृतियाँ भण्डारों में हस्तलिखित प्रतियों के ही रूप में होने से असुलभ हैं । इन सबके कारण अपभ्रंश साहित्य के कोई एकाध अंग या पहलू का भी वृत्तान्त तैयार करने में अनेक कठिनाइयाँ सामने आती हैं और फलस्वरूप वह वृत्तान्त अपूर्ण रूप में ही प्रस्तुत किया जा सकता है । यह तो हुई सर्वसाधारण अपभ्रंश साहित्य की बात । फिर यहाँ पर हमारा सीधा सम्बन्ध कृष्णकाव्यों के साथ हैं । अतः हम उसकी बात लेकर चलें । भारतीय साहित्य के इतिहास की दृष्टि से जो अपभ्रंख का उत्कर्षकाल हैं वही है कृष्णकाव्य का मध्याह्नकाल | संस्कृत एवं प्राकृत में इसी कालखण्ड में पौराणिक और काव्यसाहित्य को अनेकानेक कृष्ण विषयक रचनाएं हुई । हरिवंश विष्णुपुराण भागवतपुराण आदि की कृष्णकथाओं ने तत्कालीन साहित्य रचनाओं के लिए एक अक्षय मूलस्रोत का काम किया है । विषय, शैली आदि की दृष्टि से अपभ्रंश साहित्य पर संस्कृत - प्राकृत साहित्य का प्रभाव गहरा एवं लगातार पडता रहा । अतः अपभ्रंश साहित्य में भी कृष्ण विषयक रचनाओं की दीर्घ और व्यापक परम्परा का स्थापित होना अत्यन्त सहज था । किन्तु उपरिवर्णित परिस्थिति के कारण न तो हमें अपभ्रंश का एक भो शुद्ध कृष्णकाव्य प्राप्त है और न एक भी जैनेतर कृष्णकाव्य । और जैन परम्परा की जो रचनाएं मिलती है वे भी अधिकांश अन्य बृहत् पौराणिक रचनाओं के अंश रूप मिलती है। उनमें से अधिकांश कृतियाँ अब तक अप्रकाशित है । नहीं होता कि अपभ्रंश का उक्त कृष्णसाहित्य काव्यगुणों से वंचित है पर इतना तो अवश्य हैं कि कृष्णकथा जैन साहित्य का अंश रहने से तज्जन्य मर्यादाओं से वह वार्धित है । २. जैन कृष्णकथा का स्वरूप वैदिक परम्परा की तरह जैन परम्परा में भी कृष्णचरित्र पुराणकथाओं का ही एक अंश था । जैन कृष्णचरित्र वैदिक परम्परा के कृष्णचरित्र का ही सम्प्रदायानुकूल रूपान्तर था । यही परिस्थिति रामकथा आदि कई अन्य पुराणकथाओं के बारे में भी है । जैन परम्परा इतर परम्परा के मान्य कथास्वरूप में व्यावहारिक दृष्टि से एवं तर्कबुद्धि की दृष्टि से कुछ: Jain Education International इतना ही नहीं, इसका अर्थ यह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 144