Book Title: Re Karm Teri Gati Nyari Author(s): Gunratnasuri Publisher: Jingun Aradhak Trust View full book textPage 7
________________ भक्ति की। संत अचानक पहुँचे थे, इसलिए भक्त ठहरने की व्यवस्था कुछ नहीं कर पाये थे । उपाश्रय स्थानक अथवा धर्मशाला जैसा. गाँव में कुछ भी नहीं था। इसलिए एक आलीशान घर में संत ने रात गुजर-बसर करने का निर्णय लिया। सेठ बरसों से मुम्बई में रहते थे। चाबी पड़ोस में थी । मकान खोल कर देखा तो लोग हैरत में पड़ गये। कचरा अनाप-शनाप पड़ा हुआ था। चारों ओर धूल बिखरी हुई पड़ी थी। आँधी-तूफान की करतूत साफ-साफ नजर आ रही थी । सबसे पहला काम उन्होंने यह किया कि प्रकाश में यह देख लिया कि कचरा और धूल कहाँ-कहाँ जमी हुई है ? तत्पश्चात् उन्होंने सभी खिड़कियाँ बन्द कर दी, चूँकि बाहर आँधी दूर-दूर क्षितिज पर रूप ले रही थी, धूल से दिशाएँ रंगीन होने लगी थी.... प्रकाश में देखने के बाद उन्होंने सात-आठ बहिनों के हाथ में झाडू थमा दिये.....सफाई अभियान चालू हो गया। थोड़ी ही देर में संत ने देखा मकान की रौनक ही बदल गई .... फर्श साफ-सुथरी (Neat & Clean) कर दी गई थी....... अनादि काल से आत्मा रूपी घर में कर्म-कचरे ने अपना अड्डा जमाया हुआ है। ज्ञान का प्रकाश होते ही हमें कर्मसत्ता का पूरा ख्याल हो आता है... T फिर हम तप रूपी झाडू लेते हैं हाथ में.... चूँकि तप संशोधक है..... इसके बावजूद हम देखते हैं कि हम एक काम करना तो गोया भूल ही गये। हम थोड़ा निकालते हैं कर्म रूपी कचरा और ऊधर देखते हैं तो ढेर सारा नया घूस आया है अंदर .... चूँकि असंयम रूपी खिड़कियाँ हमने बेपरवाही से यों ही खुल्ली छोड़ रखी थी.... और रे कर्म तेरी गति न्यारी. 11/6 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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