Book Title: Re Karm Teri Gati Nyari
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 6
________________ रेकर्म ! तेरी गति न्यारी !! प्रवचन-1 कर्मबन्ध और उसकी प्रक्रिया नाणं पयासगं सोहगो, तवो संजमो गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाओगे, मोक्खो जिणसासणे भणिओ ॥ अनंत उपकारी शास्त्रकार भगवंत फरमाते हैं कि ज्ञान प्रकाशक है, तप संशोधक है और संयम गुप्तिकार है। इन तीनों का जब समागम होता है, तब आत्मा का मोक्ष होता है। ज्ञानप्रकाशकहै... आत्मा में रहे हुए कर्म और उनके अच्छे-बुरे फल आदि की जानकारी ज्ञान के द्वारा ही प्राप्त होती है। धुप्प अंधेरे में बल्ब की रोशनी जब झगमगा उठती है, तब कहाँ क्या पड़ा है? वह नजर आता है, वरना पग-पग पर गिरने का.......ठोकरे खाने का भय सिर पर सवार रहता है... न मालूम बीच में कैसी-कैसी चीजें बिखरी पड़ी हो? तपसंशोधक और संयमगुप्तिकर है - राजस्थान के छोटे से कस्बे में एक संत का प्रवास हुआ। साधु-संत वहाँ पिछले दस सालों से आये नहीं थे। खूब भाव रे कर्म तेरी गति न्यारी...!!/5 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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