Book Title: Re Karm Teri Gati Nyari
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 4
________________ प्रकाशकीय आज चहुंओर भौतिकवाद की भीषण आँधी के दुष्परिणामों की बौछार लगी हुई है। आज का नौजवान, यौवन की दहलीज पर पाँव रखते ही आत्मघाती सामाजिक विकृतियों की ओर घसीटता जा रहा है। आत्महत्या, बलात्कार, विद्रोह, हिंसा, लूटपाट आदि अपकृत्यों में फँसा-धंसा हमारा युवक, राम के बदले रावण की कार्बन कॉपी का लेबल खूब आसानी से पाता जा रहा है। चरित्रहीनता पराकाष्टा पर पहुँच गई है। गुनाह करना पाप नहीं, गुनाह करके पकड़ा जाना पाप है....! यह विध्वंसक मान्यता आम जनता में जोर पकड़ती जा रही है। कर्मवाद की जड़ें हिल गई... उदात्त विचाराधाराओं की गड्डाएँ सूख गई... धर्म की धारा उजड़ और बेजान-सी बन गई। मनुजों के मन-मस्तिष्कों में और हृदय-सिंहासनों पर आसीन जब तक इस कर्मवाद की पुन: प्रतिष्ठा नहीं की जायेगी, तब तक इंसान को इंसानियत के नाम zero शून्य के बराबर संसिद्धियाँ प्राप्त होगी। युवकों के मनमस्तिष्क में कुक्कुरमुत्तों की तरह फैलती ओर पनपती जा रही अनाचार की अनवस्थितियों के जिम्मेदार सिर्फ युवक ही नहीं, हमारा बुजुर्गवर्ग भी है। यदि स्वात्मनिरीक्षण किया जायेगा तो इस हकीकत की सच्चाई दीपक की लौ की तरह चमकती और दमकती साफ-साफ नजर समक्ष तैरने लगेगी। न तो हमने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान के प्रेरणा स्त्रोत शिविरों के आयोजन कर आत्मा, परभव, नरक, मोक्ष, कर्मवाद आदि गहन विषयों का अवगाहन करने का मौका ही दिया है और न ही ऐसा कोई साहित्य ही छपवाया है। हमारी युवापीढ़ी आज पथ से भटकती जा रही है....इसका दर्द संतों के दिल में कुंडली बनकर बैठा रहता है। वे वेदना से कराह उठते हैं। पू. गुरुदेव युवक जागृति प्रेरक, पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद्विजय गुणरत्नसूरीश्वरजी म. सा. के हृदय की इस छिपी वेदना को दूर करने के प्रयास स्वरूप विभिन्न पर्यटन एवं विख्यात तीर्थ स्थलों पर ग्रीष्मकालीन रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /3 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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