Book Title: Ratnakarandaka Shravakachara
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 4
________________ इस पवित्र कार्यमें, यथेष्ट पारिश्रमिक पाते हुए भी, विद्वानोंद्वारा इतना प्रमाद किया जा सकता है। - मैं जैनेन्द्रप्रेस कोल्हापुरके मालिक सहृदय पण्डित कल्लाप्पा भरमाप्पा निटवेका बहुत ही कृतज्ञ हूँ जिन्होंने इन अशुद्धियोंकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया और साथ ही बहुत बड़े परिश्रमके साथ एक शुद्धिपत्र बनाकर भी भेज दिया जिसका आवश्यक अंश ग्रन्थके अन्त में दे दिया गया है । साधारण अशुद्धियोंको विस्तारभयसे छोड़ देना पड़ा। __मैं दो ढाई महीनेसे बीमार हूँ । बीमारीकी अवस्थामें ही यह निवेदन लिखा गया है। प्रस्तावना आदिका प्रूफसंशोधन भी इसी अवस्थामें हुआ है । अतएव बहुतसी त्रुटियाँ रह गई होंगी । उनके लिए पाठकोंसे क्षमाप्रार्थी हूँ। -मंत्री। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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