Book Title: Rajprashniya Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 398
________________ ३४८ गजपनीय सूत्र वारैः सार्द्ध संपरिवृतः पञ्चविधेन अभिगमेन वन्दने नमम्यति, एतमर्थ भृयोभ्यः सम्यग् विनयेन क्षामयति ॥ सू० १५७ ।। टीका--"तए णं पएसी राया" इत्यादि-ततः ग्वलु म प्रदेशी गजा केशिनं कुमारश्रमणम्, एवमवादात्-हे भदन्त ! ए ग्वलु मम एतद्रूपः-अनुपदं वक्षमाणस्वरूपः आध्यात्मिकः-आत्मगतः क्षमापनारूपोर्चाकुर इन, यावत्-गान्पदेन "चिन्तितः, कल्पितः, प्रार्थितः, मनोगतः, संकल्पः' इत्येषां पदानां सङ्ग्रहो बोट, तत्र "अंतेउरपरियालसद्धिं संपरिबुडे पंचविहेणं अमिगमेण वंद-नमंसह-" निकल ते ही वह अन्तःपुर परिवार से परिवेष्टित हो गया. इस तरह से प्रदेशी गजाने पांच प्रकारके अभिगम से केशीकुमार श्रमण की गन्दनाकी-उनकी स्तुति की. "एयमट्ठे भुज्जो भुज्जो सम्म विणएणं खामेइ-" स्तुति नमस्कार करके फिर उसने अपने प्रतिकूल आचरण से जनित अपराव की बार-२ अच्छी तरह से विनत्र भावसे युक्त हो कर क्षमा कराई, अर्थात-क्षमा मांगी ____टीकार्थ-प्रदेशी राजाने केशीकुमारश्रमण से इस प्रकार कहा-हे भदन्त ! अब मुझे इस प्रकार का यह आध्यात्मिक विचार उत्पन्न हुवा. कि-मैं अपने प्रतिकूल आचरण से जनित अपराध की आप से बार-बार क्षमा करावें, यहविचार आत्मगत होने से पहले तो अङ्कुर की तरह उत्पन्न हुग. अतः-उसे आध्यात्मिक रूपसे प्रकट किया गया है. बाद में यावत् पदसे चिन्तितः कल्पितःप्रार्थितः-मनोगतः इन विशेषणों वाला हवा है कि यह विचार स्मरणरूप बन नीज्या. "अंतेउरपरियालसाद्ध सपरिवुडे पंचविहेण अभिगमेण चदइनमसई" नीsudi ara पोताना त:५२ परिवारथी पीटा गयो. l પ્રમાણે તૈયાર થયેલા પ્રદેશી રાજાએ કેશી કુમારશ્રમણની પાસે જઈને પાંચ પ્રકારના અભિગમથી કેશી કુમારશ્રમણની વન્દના કરી તેમની રતુત કરી, નમસ્કાર કર્યા. "एगम भुज्जो २. सम्म विणएण खामेई" स्तुति तमा नभ२ रीने पछी તેણે પિતાના પ્રતિકૂળ આચરણથી થયેલ અપરાધની વારંવાર સારી રીતે વિન ભાવથી ચુકત થઈને ક્ષમા માંગી. ટીકાર્થ–પ્રદેશી રાજાએ કેશીકુમારશ્રમણને આ પ્રમાણે કહ્યું–હે ભદંત ! હવે મને આ જાતને આધ્યાત્મિક વિચાર ઉત્પન્ન થયે છે કે હું મારા પ્રતિકૂળ આચરણથી થયેલ. અપરાધ બદલ આપશ્રી પાસેથી વારંવાર ક્ષમા માંગું. આ વિચાર આત્મગત હોવાથી પહેલાં તે અંકુરની જેમ ઉત્પન્ન થયે. એથી તેને આધ્યાત્મિક ३थे ४८ ३२वाभा मा०यो छ.. त्या२ पछी यावत् पहथी - "चिन्तितः, कल्पितः, प्रार्थितः मनोगतः', २॥ विशेषणेथी युत थथे। छ, वियाग्ने वितित पहथी

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