Book Title: Rajprashniya Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 452
________________ ४०२ गजप्रश्नीयमत्र निपुणकुशलाभिः विनीताभिः चेटिकाचावालतरुणीवृन्दपरिवार-रिवृतः वर्षधकञ्चुकिमहत्ताकवृन्दपरिक्षिप्तः हस्ताद् हस्तं संहियमाणाः २ अङ्गाद् अङ्क परिभोज्यमानः २ उपनृत्यमानः २ उपगीयमानः २ पलाल्यमानः २ उपगृह्यमानः २ लिप्यमाणः २ परिवन्धमानः २ परिचुम्व्यमानः २ रम्येषु मणिकुट्टिमतले पु पर्यङ्ग्यमाणः २ गिरिकन्दरालीन इव चम्पकवरपादपः निर्व्याघाते सुखसुखेन परिवर्धिष्यते ॥ सू० १६९ ॥ विदेश के वेप से सजी हुवी, 'सदेसनेवस्थगहियवसाहिं, इंगिय चिंतियपथियविशणियाहिं निउणकुसलाहिं, विणीयाहिं-' और अपने देश में वस्त्राभूषणों को जिस तरह से पहिग जाता है, उस तरह से वेष को धारण करनेवाली, तथा-इगित-चिन्तित-प्रार्थित को अच्छी तरह से समझ लेने वाली, नारियों के बीच कुशल, विनय सम्पन्न, स्त्रियों से, तथा- "चेडिया चक्कवालतरुणीवंदपरियालपरिपुडे, वरिसघरकंचुइज्जमहत्तरगवंदपरिक्खिते-" और भी दासियों के समूह से एवं युवतियों के समूह से परिवेष्टित हुवा, तथा-वर्ष घर, कन्चुकी, और महत्तरक इन के समूह से परिवेष्टिन हुवा, एवम्-"हत्थाओ हत्थं साहरिजमाण-२ उपलालिज्जमाणे-२ उवगूहिज्जमाणे-२ अबयासिज्जमाणे-परियदिज्जमाणे २ परिचुविज्जमाणे-२ रम्मेसु मणिकुट्टिमतलेसु परंगिज्जमाण २” एक हाथ से दूसरे हाथों में बार बार जाता हुवां,' एक गोदी से दूसरी गोदी में बारवार नृत्य क्रिया दिखाने से संतुष्ट किया गया. वारवार-मधुर वचनादि द्वारा लाड लडाया गया, वारवार-२ दृष्टि दोष को दूर करने के लिये वस्त्रादिकोंद्वारा ढांका गया, बारबार हृदय से लगाकर आलिविणीयाहिं' भने पातपाताना देशमा वस्त्राभूषण र शत पहराय छतशत વેષ ધારણ કરનારી તથા ઈગિત ચિંતિત અને પ્રાર્થિત ને સારી રીતે જાણનારી સ્ત્રી भी शग. विनय संपन्न. स्त्रीमाथी तमा चेडियाचक्कवालतरुणीवंद परियालपरिवुडे, परिसधरकंचुइज्जमहत्तरगवंदपरिक्खित्ते" मील पY हासी: એના સમૂહથી અને યુવતીઓના સમૂહથી પરિવેષ્ટિત થયેલે -મજ વર્ષધર કંચુકી अने भत्त२४ अमना साथी परिवष्टित येसो भने "हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे २ उपलालिज्जमाणे २, उवगूहिज्जमाणे २,. अबपाहिज्जमाणे २, परियंदिज्जमाणे २ परिजुविज्जमाणे २, रम्मेसु मणिकुट्टिमतलेसु परगिज्जमाणे २" એક હાથેથી બીજા હાથમાં વારંવાર જ એકના ખળામાંથી બીજાના ખેળામાં વારંવાર લઈ જવાતે વારંવાર નૃત્ય ક્રિયા બતાવીને સંતુષ્ટ કરાયેલ, વારંવાર મધુર વચનો વડે લાડ કરીને, વારંવાર દૃષ્ટિ દોષને દૂર કરવા માટે વસ્ત્રાદિકાથી ઢાંકેલે,

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