Book Title: Rajprashniya Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 492
________________ ४४२ राजप्रश्नीयमत्रे ____ मूलम्-तए णं दढपइन्ने केवली एयारूवेणं विहारेण विहरमाणे वहई बालाई केवलिपरियायं पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएता बहूई भत्ताई पच्चक्खाइस्सइ, बहूई भत्ताई अणसणाए छेइस्सइ-जस्सट्टाए कीरइ णग्गभावे केसलोए बंभचेरवासे अण्हाणगं अदंतवणं अणुवहाणगं भूमिमेजाओ फलहसेजाओ परघरपवेसो लद्धावलद्धा माणावमाणाइं परेसिं हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ तज्जणाओ ताडणाओ गरहणाओ उच्चावया विरूवरूवा वावीसपरीसहा उवसग्गा गोलकंटगा अहियालिज्जति तम आराहिस्सह, चरिमेहिं ऊसासनीसासेहिं सिज्झहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खणमंतं करेहिइ । ॥ सू० १७५ ॥ छाया-ततः खलु दृढप्रतिज्ञः केवली एतपेण बिहारेण मिहान् गहुनि वाणि केवलिपर्यायं पालयिका आन्मन आयुश्शेपम् आभुज्य वहनि भक्तानि प्रत्याख्यायति बहूनि भक्तानि अनशनेन छेत्स्यति, यस्यार्थाय क्रियते नग्न "तए णं दढपइणो केवली-' इत्यादि मूलार्थ-"तए णं" इसके बाद-"दढपइन्ने केवली-" वे दृढप्रतिज्ञ केवली"एयाख्वेणं विहारेणं विहरमाणे-' इस प्रकार के विहार से विहार करते हुवे"वहूई वासाई केवलिपरियायं-" अनेक वर्षों तक केवलीपर्याय को"पाउणित्ता-" पालकर के-"अपणो आउसेसं आभोएत्ता-" एवं अपने आयु के अन्त को जान करके-"वहई भत्ताइ पच्चक्खाइस्सइ-" अपने अनेक भक्तों का प्रत्याख्यान करेंगे-"वहूई भत्ताई अणसणाए छेइासइइ-" अनेक भक्तो "तए णं दढपइण्णे केवली" इत्यादि। भृतार्थ-"तएणं" त्या२ पछी "दढपइन्ने केवली" ते ४४प्रतिज्ञ gaal "एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे" 20 प्रमाणे पिडा२ ४२ai "बहूई वासाइ केवलि परियायं" घg| सुधी पक्षी पर्यायतु 'पाउणित्ता" पादन ४२२. "अप्पणो आउसेसं आभोएता" मने पाताना मायुप्यना मत समयने तीने "वहूइ भत्ताई पचक्खाइस्सई" पाताना ! मतानु प्रत्याभ्यान४२शे बहई भत्ताई अण

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