Book Title: Rajprashniya Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 456
________________ ४०६ राजप्रश्रीपत्र खंधावारमाणं ४५ चारं ४६ पंडेिचार ४७ वूह ४८ चकवूह ४९ गरुलवूह ५० सगडवूह ५१ जुद्धं ५२ नियुद्ध ५३ जुजु ५० अट्टिजुद्ध ५५ मुट्ठि ५६ बाहुजु ५७ लयाजुद ५८ ईसत्थ ५९ छरुष्पवाय ६० धणुवेयं ६१ हिरण्णपागं ६२ सुवण्णपार्ग ६३ मणिपागं ६४ धाउपागं ६५ सुत्तखेड ६६ वरखेड ६७ णालियाखेड ६८ पत्तच्छेनं ६९ कडगज्छेजं ७० सजीव निजीव ७१ सउणम्य ७२ इति । ॥सू० १७० ॥ छाया - ततः खलु तं ददप्रतिज्ञ दा कम् अम्वापितरौ सातिरे ष्टवर्षं जातकं ज्ञात्वा शोभने तिथिकरण नक्षत्रमुहूर्ते नातं कृतवलिकर्माणं कृतकौतुकमलप्रायचित्तं सर्वालङ्कारविभूषितं कृत्वा महना ऋद्धिसत्कार समुदयेन क्लाचार्यस्य उप"तएण तं दृढपण " इत्यादि w मूलार्थ - " तए णं” इसके बाद - "द पडणं - " दढ प्रतिज्ञ "दारगं" दारक बालक को –“अम्मापियरो” मातापिता "साइरेगअहवासजायगं जाणित्ता - " आठ वर्ष से कुछ अधिक का हुवा जानकर - "सोभणं सि तिहिकरणणकवत्तमुहुत्तसि हायं " शोभनतिथि नक्षत्र मुहूर्त में उसे स्नान कराकर ' कवलिकम्मं कयकोउयमंगलपायच्छित्त, सव्यालंकार विभूसिय करेत्ता -" उससे बलिकर्म काकआदि को अन्नादि का भाग देकर, कौतुकमङ्गलरूप ग्रायश्चित्तक कर, एवं उसे समस्त अलङ्कारों से विभूषितकर - " महया इसका समुद कलायरियस्स उवणेहिंति-" अपनी विशाल ऋद्धि के अनुरूप सत्कारपूर्वक कला "तए ण तं दढपणं" इत्यादि । ! भूसार्थ - 'तए णं' त्यार पछी 'दढपइष्णं' दृढप्रतिज्ञ 'दारगं' हार जाने 'अम्मा पियरो' मातापिताये “साइरेगअट्टवासजायगं जाणित्ता' आठ वर्ष ४२तां था। भोटो थयेस लगीने 'सोभणंसि तिहिकरणक्खत्तमुहुत्तंसि हाय ' शोलनतिथि नक्षत्र भुहूर्त'भां तेने स्नान उशवशे, 'कयवलिकम्मं; कयकोउयमंगलपायच्छित्तं, सव्वाल कारविभूसिय करेता' तेना वडे गतिर्भ - अगडा वगेरेने અન્ન વગેરેને ભાગ અપાવડાવીને, કૌતુક મંગલરૂપ પ્રાયશ્ચિત્ત કરાવીને અને તેને समस्त अल अशथी विभूषित रीने 'महया इढिसक्कारसमुदएणं कलायरियस्स उवणेहिंति' पोतानी विशाण ऋद्धिना अनु३य सत्हारपूर्व उसाचार्यानी पासे भोउसशे,

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