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राजप्रश्नीयसूत्र समुत्पन्न, जले संदृद्धं-वृद्धिं गतमपि नोपलिप्यते-ने पलिप्तं भवति, पङ्करजसा, नोपलिप्यते जलरजसा, इत्थ दृष्टान्तमुक्त्वा दार्टान्तिकमाह-'एवमेव' इत्यादि । एवमेव-अनेन प्रकारेणैव दृढप्रतिज्ञोऽपि दारकः कामः जाताऽपि भोगः संवृहो वृद्धि गतोऽपि कामरजसा नायलेप्स्यते-उपलिप्तो न भविष्यनि, भोगरजसा नोपलेप्स्यते-उ लिप्तो न भविष्यति, तथा मित्रज्ञातिनिजकस्वजनसम्बन्धि परिजनेन-तत्र मित्राणि-सुहृदः, ज्ञातयः माता-पिता भ्राबाद: निजकाः स्वकीयाः पुत्रादयः, स्वजना:-पितृव्यादयः सम्बन्धित:-स्वश्वशुरपुत्राश्वशुरादयः, परिजनगःदासीदामादयः एतेपां समाहारस्तेन सह नायलेपयते-उपलिप्ता नो भविष्यति । अपितु स खलु दृढलि ज्ञः अनगारा भविष्य नि, कीदृशोऽनगारो भविष्यति? 'ईरिया पमिए इत्यादि । ईर्ष्यासमिन ईसिमि ने युक्तः, 'यावत् यावत्पदेन-भासाममिए एपणा पमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणाममिए उच्चारपासवणखेलसिंचाणजल्लपरिटायणि राममिए मणगुत्ते वयगुत्ते कारगुत्ते गुत्ते गुतिदिए गुत्तव भयारी अममे अकिंचणे छिण्णगधे यद्यपि-कीचड से उत्पन्न होते हैं, जल में वृद्धिपाते हैं, परन्तु फिर भी कीचड रज से लिप्त नहीं होते हैं। जलरज मे सम्बन्धित नहीं होते हैं, इसी प्रकार सेदृढप्रतिज्ञ भी दारक काम से उत्पन्न हुवा है भोगों से संवर्धित हुवा है, फिर भी वह काम ज से उपलिप्त नहीं बनेगा, मित्रजनों से ज्ञाति जनों से माना पिता, भ्राना आदि या से निजजनों से पुत्रादिकों से स्वजनों से पितृव्यादि कों से सम्बन्धित जनों से श्वशुर पुत्रग्वशुर आदि से, एवं परिजनों से दासीदास आदि कों से सम्बद्ध नहीं होगा. । किन्तु वह दृढप्रतिज्ञ अनगार होगा. । ईसमिति का पालन करेगा, यावत् भापा समिति का एपणा समिति का, आदानभाण्डमात्र निक्षेपणसमिति का उच्चारमस्रवण खेल सिंधाण जल्ल परिष्ठापनिका समिति का पालन करेगा, मनोगुप्ति का वचन गुप्ति का कायगुप्तिका पालन करेगा यहां ऐसा समझना चाहिये । हित मितप्रिय वचन बोलना इसका नाम भापासमिति है। इस પણ છતાં એ કાદવથી લિપ્ત થતાં નથી. આમ તે દઢપ્રતિજ્ઞ દારક પણ કામથી ઉત્પન થશે ભોગોથી સંવદ્વિત થશે છતાં તે કામરજથી ઉપલિપ્ત નહિ થશે, મિત્રજનોથી પુત્રાદિકથી સ્વજનોથી પિતૃભ્યાદિકથી સંબંધીજનેથી શ્વશુર, પુત્રશુર વગેરેથી અને પરિજનથી, દાસીદાસ વગેરેથી સમ્બદ્ધ થશે નહિ, પણ તે દઢપ્રતિજ્ઞ અનગાર થશે. ઇસમિતિનું પાલન કરશે, યાવત ભાષા સમિતિનું, એષણ સમિતિનું, આદાન લાડમાત્ર નિક્ષેપણુસમિતિનું ઉચ્ચાર પ્રસવણ-ખેલ, સિંધાણુ જલ-પરિસ્થાનિકા સમિતિનું પાલન કરશે. મને ગુપ્તિનું, વચેપ્તિનું, કાયગુપ્તિનું પાલન કરશે. આમ અહીં સમજવું જોઈએ, હિત–મિત પ્રિયવચન બોલવું તેનું નામ “ભાષા સમિતિ છે.