Book Title: Rajprashniya Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 405
________________ सुबोधिनी टीका स. १५९ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् .. ३५५ वा नाटयशाला इति वा इक्षुवाटकम् इति वा खलवाटकम् इति वा कथं खलु भदन्द ! वनपण्डः पूर्व रमणीयो भूत्वा पश्चाद् अरमणीयो भवति ? । प्रदेशिन् ! यथा खलु बनषण्डः। पत्रितः पुष्पितः फलितः हरितः हरितकराराज्यमानः श्रिया अतीव उपशोभमानः तिष्ठति, तदा खलु वनषष्डो रमणीयो भवति, यदा खलु पुच्चि रमणीए भवित्ता पच्छा-अरमणिज्जे भविज्जासि-" हे प्रदेशिन्-! तुम पहले रमणीय होकर बाद में अरमणीय मत बनना. अर्थात्-धार्मिक होकर अधार्मिक मत बन जाना "जहा से वणसंडेइवा-गट्टसालाइवा-इक्खुवाडएइवाखलवाडएइ वा-" जैसे पूर्व में रमणीय होकर वनषण्ड अरमणीय बन जाता है, अथवा नाटयशाला, या इक्षु पीडन स्थान या-खलवाटक पूर्व में रमणीय होकर अरमणीय बनजाते हैं. अब प्रदेशी पूछता है-"कहं णं भंते ? वणसंडे पुचि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवइ-" हे भदन्त ? वनपण्ड पूर्व में रमणीय होकर बाद में अरमणीय किस प्रकार से हो जाता है-३ "उत्तर में प्रभु कहते हैं-"पएसी-जहा णं वणसंडे पत्तिए-पुष्फिए-फलिए हरिया रेरिजमाणे सिरीए अईव उवसोभेमाणे-तयाणं वणसंडे रमणिज्जे भवइ-" हे प्रदेशिन् ? बनषण्ड जव पत्रों से युक्त होता है-पुष्प सम्पन्न होता है-फलित फली से सहित होता है, हरियाली से युक्त होता है. हरे हरे पत्ते आदि से अतिशय सुहावना होता है तब वनपण्ड अपनी शाभासे सुशोभित होता हुवा रमणीय होता है, रमणीए भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि" उ प्रहशिन् ! तमे पाडला २मણીય થઈને પછી અરમણીય બનશે નહિ, એટલે કે ધાર્મિક થઈને અધામિક બનશે नाड, “जहा से वणसं डेइ वा णट्टसरलाइवा इवखुवाडएइवा खल गडइवा" म पडला રમણીય થઈને વનખંડ પછી અરમણીય થઈ જાય છે. અથવા નાટયશાળા કે ઈશ્નપીડનસ્થાન કે ઈક્ષનાટક પહેલા રમણીય થઈને પછી અમણુય થઈ જાય છે. હવે अशी ५१ ४३ छ."कहणं भते ! वणसंडे पुचि रमणिल्जे भरित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवई महत! वनष पडता रमणीय थाने पछी मरमणीय ४४ शत थ य छ 3, उत्तरमा ४९ छ “पएसी जहाणं वणसंडे पत्तिए पुफिए फलिए हरिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अईव उपसोभेमाणे तयाण वणसंडे रमणिज्जे. भवइ" प्रशिन वन न्यारे पत्राथी युत सय छ, पुष्प સંપન્ન હોય છે, ફળ યુક્ત હોય છે. હરીતિમાથી યુકત હોય છે તેમજ લીલા પાંદડાઓ વગેરેથી આ અતિશય. સેહામણે હોય છે, ત્યારે તે વનખંડ પિતાની ભાથી સુશોભિત થતે રમણીય હોય છે. એટલે કે આ પ્રમાણે વનખંડ રમણીય કહેવાય છે.

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