Book Title: Rajprashniya Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 421
________________ सुबोधिनी टीका स. १६२ सू· भिदेवस्य पूर्वभवजीवप्र दे शिराजवर्णनम् ३७१ वाहनं - स्थादिपुरं - नगरम् f बलरूपेण सप्ताङ्गम् राष्ट्र - देशं यावत्-शवच्छब्देन "वलं- सैन्यं, कम्, कोपं-पत्नादिभाण्डागारम्, 'कोष्ठागार - घा' यग्थापन गृहम् इति संग्राह्यम्, अन्तःपुरम् - अन्नः पुरन्थपरिवारम् च पुनः मां च - तथा जनपदं - विजिनदेर्श च" अनाद्रियमाणः - तच्चिन्तामकुर्वाणा विहरनि तिष्ठति, तत् तर्हि मे मम श्रेय - समीचीन खलु प्रदेशिनं राजनं केनापि शस्त्र योगेण - खङ्गा दिप्रयोगेण, वा अथवा अभिप्रयोगेण - अग्निना दाहनरूपेण, - मन्त्रयोगेण - मन्त्रजापरूपेणे, वा- अथवा, त्रिपप्रयोग-विपदानरूपेण, उपद्रुत्य -मारयित्वा सूर्यकान्तं सूर्यकान्तनामकं, कुंमारं-मम पुत्रं राज्ये स्थापयित्वा संनिवेश्य स्वयमेव अहं स्यं राज्यश्रियं - राज्यलक्ष्मी कारं न्त्याः - बलवाहनादिभिः सः घयन्त्याः पालय त्यारक्षयन्त्याः विहर्तु - स्थातुम । इतिकृत्वा - इतेि वितकर्यं एवं पूर्वोक्तानुसारेण संप्रेक्षते - निर्धारयति निर्धाय सूर्यकान्तं कुमारं शब्दयति आह्वयति, शब्दयित्व एवमवादीत्-यं प्रभृति च खलु प्रदेशी. राजा श्रमणोपासको जात - : • पुर- " इन पदों का संग्रह हुवा है, । अन्तःपुर शब्द से अन्तःपुरस्थ परिवार का ग्रहण किया गया है । तथा जनपद से विजित देश लिया गया है, इस सूत्र का भावार्थ ऐसा है कि जब सूर्यकान्ता देवीने यह जान लिया कि प्रदेश राजा श्रमणोपासक बन चुका है, और अपने बल - वाहन आदि की संभाल : आदि की ओर उसका जैसा ध्यान होना चाहिये अब वैसा नहीं रहा और न वह मेरी भी अब कुछ चाहना करता है, तब उसके मनमें इस को दूर करने के लिये ऐसा विचार उठाकि जैसे भी बने, चाहे - अग्निप्रयोग से हो, या शस्त्रादि से हो, अवश्य ही इस प्रदेशी राजों का विनाश' 'कर देना चाहिये, तथा-- - सके स्थान पर सूर्यकान्त पुत्र को स्थापित कर देना चाहिये. इसी में अंब भलाई है। एसा विचार कर उसने पुत्र को बुलाया' , 2 " वाहन कोप कोष्ठागारं पुरं या पैहोनो: स अडथयो यान्तःपुर राष्ट्री અન્તઃપુરસ્થ પરિવારનુ ગ્રહણ થયુ" છે. તેમજ જનપદથી વિજિત (જીતેલા)દેશના અ લેવામાં આવ્યું છે. આ સૂત્રને ભાવાય આ પ્રમાણે છે કે જયારે સુર્યકાંતા દેવીએ આ વાત જાણી લીધી કે પ્રદેશી રાજા શ્રમણેાપાસક થઇ ગયા છે અને પેાતાના ખલવાહન વગેરેની સભાળ રાખતા નથી અને મારી તરફ પણ તેનુ ધ્યાન નથી રિ તેના મનમાં તે કાંટાને દૂર કરવાના વિચાર ઉત્પન્ન થયા કે ગમે તે રીતે અગ્નિ પ્રયાગથી, કે શસ્રાદિ પ્રયાગથી આ રાજાને મારી નાખવો જોઇએ તથા તેની ખાલી પડેલી જગ્યાપર સૂર્યકાંત પુત્રને ગાદીએ એસાડવા જોઈએ. આમાં જ હવે રાજયની ભલાઈ છે, આમ વિચાર કરીને તેણે પુત્રને ખેલાવ્યેા. અને પેાતાના આ જાતના

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