Book Title: Rajprashniya Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 433
________________ सुबोधिनी टीका सु. १६४ सू. भिदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् ३८३ इति कृ वा-इत्यालोच्य स प्रदेशी राजा आलोचितप्रतिक्रान्तः-आलोचिताः-पूर्व गुरुमभिमुखीकृत्य प्रकाशिताः अतिचा.: ते पश्चात् प्रतिक्रा ताः-पुनरकण विषयीकृता येनासौ तथा-आलोचनापूर्व कप्रदत्तमिथ्यादुष्कृत इत्यर्थः समाधि प्राप्तचित्त समाथिकः मन् कालमासे-कालावसरे कालं कृत्वा-मृत्युं प्राप्य मर्यामे विमाने उपपातमभायौं देवतया-देव वेन उपपन्नः- मुत्पन्नः । ॥सू० १६४॥ इति प्रदेशिराजस्य वनिं । माप्तम् ॥ अथ प्रदेशिराजजीवय सूर्याभव याऽऽगामिभववर्णनमाह मूलम्-तए णं सूरिया देवे अहुणोववन्नमए चेव समाणे पंच. विहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, तं जहा-आहारपजत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपजत्तीए आणपाणपजत्तीए भासमणपजत्तीए, त एवं खलु भो ! सुरियाभेणं देवेणं दिव्या देविड्डी दिव्वा देवजुई दिवे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए । ।।सू० १६५॥ __ छ.या-ततः खलु स सूर्याभो देवः अधुन पपन्नक एव सन् पञ्चविधया पर्याप्ति भावं गच्छति, तद्यथा आहारपर्याप्त्या१, शरीरपर्याप्त्या२, इन्द्रियपर्याप्त्या३, आनकरता हूं. इस तरह विचार कर वह प्रदेशी राजा आलोचित प्रतिक्रान्त होकर समाधि में तल्लीन हो गया. और-काल मास में मरण प्राप्त कर सूर्याभविमान में-उपपात सभा में देव पीय से उत्पन्न हो गया. ॥सू० १६४॥ (प्रदेशी राना वर्णनसमाप्त.) "प्रदेशी राजा के जीव-मूर्याभ देव के आगामी भवका वर्णन "तए णं से मरियामे देवे अहुणोववन्नए-" इ-यादि मूलार्थ-"तए ण मरिमे देवे-" इसकेबाद तत्काल उपन्न हुवा ही वह मर्याभदेव पांच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्त हो गया. "तं जहा-आहार રાજા આલોચિત પ્રતિકાત થઈને સમાધિમાં તલ્લીન થઈ ગયે અને કાલ માસમાં મરણ પામીને સૂર્યાભવિમાનમાં ઉપપાત સભામાં દેવ પર્યાયથી ઉત્પન્ન થશે. સૃ.૧૬૪ પ્રદેશી રાજાનું વર્ણન સમાપ્ત. "प्रदेशी नाना १-सूर्याभवन भी मनु वर्णन." ___ "तएणं से सूरियामे देवे अहणोववन्नए" इत्यादि. भूतार्थ-"तएणं सूरियाभे देवे" या२ पछी उत्पन्न थतi. ते सूर्यालय पांय ७२नी परितमाथी त थ गयो. "तं जहा-आहार पज्जत्तीए, सरीर


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