Book Title: Rajprashniya Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 416
________________ ३६६ राजप्रश्नीयसूत्र सहस्राणि चतुरो भागान्-चतुर्धा विभक्त.नि करोति, कृत्वा तेषु चतुर्यु भागए एकं प्रथम भाग बलवाहनाय ददाति, द्विपष्टयधिकशततम-सूत्रोक्तानुसारेण कुटाऽऽकारशालां करोति । तत्र खलु बहुभिः पुरुपेः यावत् उपस्कार्य बहुभ्यः श्रमण यावत् द्विपष्टयधिकैकशततमसूत्रोक्तानुसारेण श्रमणब्राह्मणभिक्षुकेभ्यः पथिकप्राघुणेभ्यः परिभाजयन् विहति ।। ततः खलु स प्रदेशी राजा श्रमणापासकः-श्रावको जातः कीदृशः ? इत्याह-अभिगतजीवाजीवः चतुर्दशोत्तरशततमसूत्रोक्तविशेषण विशिष्टो भूत्वा विहरति । यत्प्रभृति च-य दनादारभ्य ग्वलु प्रदेशी राजा श्रम गोपासको जातः, तत्तभृति-तदिनादारभ्य च खलु राज्यं-राष्ट्र, वलं, बाहनं, कोशं, कोप्ठागाग्म् पुरस् जनपदं च अनाद्रियमाणः-उपेक्षमाणः चापि विहरति ।।.० १६१॥ मूलम्त ए णं तीसे सूरियकताए देवीए इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था-जप्पभिइ च णं पएली रायो समणोवासए जाए त पभिई च ण रज च रटुं च जाव अते उरं च ममं च जणवयं च अणाढायमाणे विहरइ, त सेयं खलु मे पएसिं रायं केणवि सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा संतप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा उद्दवेत्ता सूरियकंतं कुमार रज ठवित्ता सयमेव रजसिरिं कारेमाणीए पालेमाणीए विहरित्तएत्ति को एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सूरियकंतं कुमार सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी-ज पभिई च णं पएसी राया समणोवासए जाए तापभिइ च णं रज च जाव अंतेउरच जणवय च माणुस्सए च काम भोगे अणादायमाणे विहकहा गया है वह गृहीत किया गया है “जाव कूडागारसालं-" में आगत्त यावत् पद से १६२ सूत्र में जो पाठ कहा गया है वह यहां गृहीत किया गया है। इसी तरह से "पुरिसेहिं जाव-" में आगत यावत् पद से भी ३६२ ये सूत्र में कथित इस विषय का पाठ ग्रहण किया गया है ॥१६१॥ ''जाव कूडागारसालं" मां आवेस यावत् पहथी १६२ भां सूत्रमा २ पाठ छ तेनु डर ४२वामा मा०यु छु. २ प्रमाणे "पुरिसेहिं जाव" भां मावेत यावत् પદથી ૧૬૨માં સૂત્રમાં કથિત આ વિષે ના પાઠનું ગ્રહણ થયું છે. ૧૬

Loading...

Page Navigation
1 ... 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499