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रामकुमारी चन्दनबाला
घने जंगल में पहुँच कर उसने रथ रोका। दोनों को स्थ से उतारने के बाद वह महारानी से बोला
हे सुन्दरी! मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ।
मैं कौशाम्बी का सिपाही हूँ। मैं तुम दोनों को अपने साथ ले जाऊँगा और अपनी पत्नी बनाऊँगा।
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ओह ! तुम महाराज के सारथी नहीं हो सकते?
कौन हो तुम?
सारथी दुर्भावना से महारानी की ओर बढ़ा। । उसे बढ़ते देख महारानी ने उसे रोका।।
रुक माओ ! यदि तुमने मुझे हाथ लगाने का प्रयास भी किया तो मैं अपनी जान दे दूंगी।
रानी को मरा देख सारथी भौचक्का रह गया। उसकी अंतरात्मा जाग उठी। दुष्कृत्यों पर पश्चात्ताप होने लगा। वह स्वयं को धिक्कारने लगा।
ओह! मैंने एक सती के प्राण ले लिए!
सारथी क्रूरता से हंसता हुआ महारानी के साथ। जबर्दस्ती करने लगा। तब शील की रक्षा के लिए महारानी ने अपनी जीभ खींच कर प्राण त्याग दिये।।
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