Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree  Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 24
________________ राजकुमारी चन्दनबाला । इसके बाद कमरे में वापस आकर काफी सोचने पर भी कोई बहाना न सूझा तो वह सोचने लगा- मैंने इसे तलघर में डाल तो सेठानी ने निर्णय लिया-बाट दिया है पर यदि लोग इसके विषय में पूछेगे तो मैं अपने पीहर चली मैं क्या कहूँगी? जाती हूँ। न मैं यहाँ रहूँगी न कोई पूछेगा। यह विचार कर वह तुरन्त अपने पीहर चली गयी। इधर अपने साधना काल के बारहवें वर्ष में भगवान महावीर अपने आत्म कल्याण के साथ प्राणियों के कल्याण का भी चिन्तन कर रहे थे। भगवान् स्त्री जाति को दास प्रथा से मुक्त कराना चाहते थे इसी .. भावना से उन्होंने एक असम्भव सा लगने वाला अभिग्रह किया। मैं उसी कन्या के हाथों अन्न-जल ग्रहण करूँगा जो पवित्र जीवन जीने वाली राजकुमारी हो, बाजार में बिकी हुई हो, उसके हाथों में हथकड़ियाँ हों पाँवों में बैड़ियाँ हों, सिर मुंडा हो, तीन दिन की भूखी-प्यासी हो, कारागृह में बन्द रह चुकी हो, घर की देहली पर बैठी हो, एक पाँव देहली के अन्दर दूसरा बाहर हो, हाथ में सूप हो, सूप में उड़द के बाकले रखें हों, मुख पर हर्ष के भाव हों, लेकिन आँखों में आँसू हों। अभिग्रह की सब बातें मिलने पर ही अन्न ग्रहण करूंगा अन्यथा छह माह तक तप करूंगा। अभियह किसी को बताया नहीं माता यदि निमित्त मिल जाए और पूरा हो जाए तो ठीक अन्यथा साधक प्रतिज्ञा से विचलित नहीं होता। Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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