Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011 Author(s): Saritashree Sadhvi, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 27
________________ राजकुमारी चन्दनबाला सेठ जी चन्दनबाला को सहारा देकर ऊपर ले आये। चन्दनबाला ने कहा पिताजी, बहुत भूख लगी है। कुछ खाने को दीजिये। तीन दिन से अन्न, जल देखा तक नहीं है। चन्दना के मन में भावना उंठी क्या बिना अतिथि को दिये खाना उचित होगा? मैं द्वार पर जाकर किसी अतिथि की प्रतीक्षा करती हूँ। Jain Education International सेठ जी उठे। उन्होंने देखा रसोईघर पर ताला लगा है। तभी उन्हें जानवरों के खाने के उड़द के बाकुले दीखे। बाकुलों के लिए बर्तन न मिलने पर वहीं टँगे सूप में बाकुलों को रखकर चन्दनबाला के पास आये। बेटी ये उड़द के सूखे बाकुले ही इस समय घर में पड़े हैं। तू इनसे अपनी भूख मिटा। तब तक में लुहार को बुलाकर लाता हूँ। यह कहकर वह चले गये। भूख-प्यास से दुर्बल हुई, जंजीरों में जकड़ी हुई काया को किसी प्रकार घसीटती हुई वह द्वार तक पहुँची। देहली पर पहुँचते-पहुँचते वह इतना थक गई कि एक ही पाँव बाहर रख सकी। दूसरा पाँव अन्दर रखकर वह उसी स्थिति में अतिथि के इन्तजार में बैठ गई। 25 For Private & Personal Use Only Q JAW G 0 wwww.jainelibrary.orgPage Navigation
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