Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree  Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवाकर चित्रकथा राजकुमारी चन्दनबाला अंक ११ मूल्य २१.०० DOOL to सुसंस्कार निर्माण - विचार शुद्धि : ज्ञान वृद्धि र मनोरंजन Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain राजकुमारी चन्दनबाला मनुष्य जाति के लाखों वर्ष का अनुभव यह बताता है कि ऋतु चक्र की भाँति जीवन में निरन्तर बसन्त और पतझड़ आते रहते हैं। उतार-चढ़ाव और सुख-दुःख छाया की भाँति मनुष्य के साथ लगे हुए हैं। संसार में सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख का क्रम दिन-रात चलता रहा है/चलता रहेगा। सुख-दुःख व उतार-चढ़ाव के इस चक्र में अपने आपको संतुलित रखकर लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने वाला मानव संसार में इतिहास बनाता है और महापुरुषों की श्रेणी में गिना जाता है। राजकुमारी चन्दनबाला का जीवन उतार-चढ़ाव के चक्र पर घूमते जीवन की विचित्र और रोमांचक गाथा है। उसकी कथा सुनते / पढ़ते ही हृदय द्रवित हो जाता है। आँसुओं से भीगी उसकी जीवन गाथा में आश्चर्य तो यह है कि आँसुओं ने ही उसके जीवन की दिशा बदल दी। जगत् बंधु प्रभु महावीर के दर्शन ने उसके आँसुओं को मोती बनाकर चमका दिया । इतिहास में अजर-अमर बना दिया। चन्दना का जन्म चम्पा के राज परिवार में हुआ। हँसी-खुशी और आनन्द की बहारों में बचपन बीता, किन्तु यौवन की दहलीज पर चढ़ते चढ़ते ऐश्वर्य और सुखों के सागर में तैरती राजहंसी एक दिन दुःखों के अथाह दलदल में फँस गई। चम्पा की राजकुमारी कौशाम्बी के दास बाजार में गुलामों की तरह नीलाम हुई। किसी अनजान अपरिचित घर में गुमनाम रहकर दासी की भाँति सेवा करती रही। ईर्ष्या और कुशंकाओं की कैंची ने उसके केशों को ही नहीं, समूचे जीवन पट को तार-तार कर रख दिया। हथकड़ी, बेड़ियों में जकड़ी हुई तीन दिन तक भूखी-प्यासी तहखाने में पड़ी रही। कठोर शारीरिक और मानसिक यातनाओं ने उसके धीरज की अग्नि परीक्षा ली, किन्तु वह हर परिस्थिति में शान्त रही, न तो अपने दुर्भाग्य पर आँसू बहाये और न ही किसी को कोसा। एक सूत्रधार की तरह तटस्थ भाव से वह भाग्य चक्र का खेल देखती रही और एक दिन वह आया, चन्दना के द्वार पर तरण-तारण दीनबंधु भगवान महावीर पधार गये । चन्दना के दुःखों का अन्त हुआ । नारी की प्रचण्ड अस्मिता जागी और दासी बनी राजकुमारी चन्दना भगवान महावीर के सबसे बड़े श्रमणी संघ की नायिका बनकर संसार को नारी जाति के कल्याण का मार्ग बताने लगी न Serving Jinshasan -महोपाध्याय विनय सागर लेखन : डॉ. साध्वी सरिता जी म. एम. ए. (डबल), पी-एच. डी. प्रकाशन प्रबन्धक : संजय सुराना श्रीचन्द सुराना "सरस" . साध्वी शुभा जी म. 070326 gyanmandir@kobatirth.org एम. ए. (डबल), पी-एच. डी. चित्रण : डॉ. त्रिलोक शर्मा प्रकाशक श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002. फोन : (0562) 2151165 प्राकृत भारती एकादमी, जयपुर 13-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017. दूरभाष : 2524828, 2524827 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N22 राजकुमारी चन्दनबाला Frh ന കാര്യം ന I 1 កកក 53004 h B ) TERCON चम्पानगरी के रामा दधिवाहन एवं महारानी धारणी की पुत्री राजकुमारी वसुमती राजभवन के उद्यान में रात को देखे अपने स्वप्न को याद कर चिन्तामग्न बैठी थी। उसे चिन्तित देख एक दासी महारानी के पास गयी। यह सुन महारानी एवं महाराज उद्यान में। वसुमती के पास आए। महारानी जी! राजकुमारी उद्यान में उदास सी बैठी हैं। 650 TyN 19-0 CHAILASSAGARSURIGYANMANDIR For Private & Personal use only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराज को आते देखकर वसुमती ने खड़े होकर उन्हें प्रणाम किया। माँ ने पूछा बेटी! क्या बात है ? तू उदास क्यों बैठी है? in Education International राजकुमारी चन्दनबाला मां, मैंने आज रात अंतिम प्रहर में एक बड़ा डरावना स्वप्न देखा है। ろっ 6 क्या स्वप्न देखा? बेटी! पिताजी! मैंने देखा कि चंपा तभी एक सीमा रक्षक ने उद्यान में आकर सूचना दी नगरी कष्टों में घिर गयी है। चारों ओर लूट-मार हो रही है। Mus 2 महाराज! कौशाम्बी की सेना ने हमारे राज्य पर आक्रमण कर दिया है। Do Shash समाचार सुनते ही महाराज अत्यन्त चिन्तित हो गये। उन्होंने तुरन्त सेना को युद्ध के लिये तैयार होने का आदेश दिया। जी 68 do 600 des pony ROBIOL Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला चम्पा की सेना ने डट कर कौशाम्बी की सेना का मुकाबला किया। किन्तु कौशाम्बी की सेना के आगे टिक न सकी और हार गयी। चंपा के राजा दधिवाहन भी युद्ध में लापता हो गये। कौशाम्बी की सेना ने चम्पा पर अपना कब्जा कर लिया और लूटपाट शुरू कर दी। एक सैनिक लूट के उद्देश्य से महल में घुस कर घूम रहा था तभी उसकी नजर रानी एवं राजकुमारी वसुमती पर पड़ी। उनकी सुंदरता देख उसका मन डांवाडोल हो गया। उन्हें साथ ले जाने के लिए उसने तुरंत एक बहाना बनाया और वह पास जाकर बोला- ला महारानी जी! मैं महाराज का 'सारथी हूँ। महाराज ने आप दोनों को वन में बुलाया है। वह दोनों को अपने साथ ले वन की ओर चल दिया। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामकुमारी चन्दनबाला घने जंगल में पहुँच कर उसने रथ रोका। दोनों को स्थ से उतारने के बाद वह महारानी से बोला हे सुन्दरी! मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ। मैं कौशाम्बी का सिपाही हूँ। मैं तुम दोनों को अपने साथ ले जाऊँगा और अपनी पत्नी बनाऊँगा। M ओह ! तुम महाराज के सारथी नहीं हो सकते? कौन हो तुम? सारथी दुर्भावना से महारानी की ओर बढ़ा। । उसे बढ़ते देख महारानी ने उसे रोका।। रुक माओ ! यदि तुमने मुझे हाथ लगाने का प्रयास भी किया तो मैं अपनी जान दे दूंगी। रानी को मरा देख सारथी भौचक्का रह गया। उसकी अंतरात्मा जाग उठी। दुष्कृत्यों पर पश्चात्ताप होने लगा। वह स्वयं को धिक्कारने लगा। ओह! मैंने एक सती के प्राण ले लिए! सारथी क्रूरता से हंसता हुआ महारानी के साथ। जबर्दस्ती करने लगा। तब शील की रक्षा के लिए महारानी ने अपनी जीभ खींच कर प्राण त्याग दिये।। Bir Education Internation Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामकुमारी चन्दनबाला पास खड़ी वसुमती ने सारथी से कहा- यह सुनते ही सारथी की आँखों से आँसू उमड़ पड़े। सुनो भाई! तुम्हारी NHAAबेटी ! तुम्हारी माता के दुष्टता देख मुझे अत्यन्त बलिदान ने मेरी सोई हुई दुख हुआ है। अपने शील आत्मा को जगा दिया है। अब की रक्षा के लिए मैं भी मैं ऐसा नीच कार्य नहीं करूंगा। प्राण त्याग रही हूँ। मुझ पर विश्वास करो। एक क्षण पहले के तुम्हारे राक्षसी रूप को देख मैं कैसे विश्वास कम्? ऐसा मत कहो बेटी! मुझ पर विश्वास करो। मैं तुम्हें विश्वास दिलाने के लिए सब कुछ कर सकता हूँ। वसुमती ने देखा कि सारथी पश्चात्ताप की आग में जल रहा है। तब वह बोली-- आप रोएं नहीं। यदि आप मुझे बेटी मानेंगे तो मैं अपने प्राण नहीं त्यागूंगी। इतना कहते-कहते सारथी टोने लगा। यह सुन सारथी को धैर्य बंधा। उसने वसुमती को अपनी पुत्री बना लिया और स्वयं उसका धर्म पिता बन गया। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + राजकुमारी चन्दनबाला उसके बाद उन्होंने जंगल से सूखी लकड़ियां सारथी वसुमती को लेकर रथ में सवार हो इकट्ठी कर महारानी का अंतिम संस्कार किया। अपने घर कौशाम्बी की ओर चल दिया। रास्ते में वसुमती ने सारथी से कहा पिताजी! आपसे एक विनती है। कि वहाँ पर किसी को मेरा असली परिचय न दें। सारथी जैसे ही अपने घर पहुंचा उसकी पत्नी । इतना सुनते ही सारथी की पत्नी गुस्से से फट पड़ीबाहर आई। उसने वसुमती को अपने पति के जितने भी सैनिक गये थे सब साथ देखा तो कहा माला-माल होकर लौटे हैं। आप कौन है यह? आपके कितना धन लेकर आए हैं? साथ क्यों आई है? मैं सिवाय पुत्री के कुछ भी धन नहीं लाया हूँ। JINil अपनी कोई संतान न थी अतः इसे अपनी पुत्री बनाकर लाया हूँ। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला |वह चिल्लाकर बोली दोनों को झगड़ते देख वसुमती सारथी से बोलीमुझे बेटी नहीं, धन चाहिए। पिता जी। आप माता की तुम इस छोकरी को बेचकर इच्छा पूरी कीजिए। मुझे मुझे एक लाख सौनेया बेच दें। लाकर दो। वर्ना... क्या कहा? पुत्री को बेच दूँ। TOGA 0000 सारथी और उसकी पत्नी घर के बाहर ही झगड़ने लगे। बोली फिर वसुमती सारथी की पत्नी की ओर मुड़कर इसके बाद वसुमती ने सारथी से कहा चलिए पितामी! माता जी! मुझे क्षमा देर न करें। करें मैंने आपका दिल दुखाया है। सारथी वसुमती को लेकर दुःखी मन से चल दिया। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यामकुमारी चन्दनबाला सारथी राजकुमारी वसुमती को लेकर दास बाजार में पहुंचा जहाँ गुलामों की खरीद-बिक्री होती थी। एक चबूतरे पर खड़ा होकर उसकी बोली लगाने लगा सज्जनो! यह सुन्दर दासी म बिकने के लिए आई है। इसका जगार मूल्य है एक लाख सौनेया! - मूल्य सुनकर लोगों को आश्चर्य हुआ। तभी एक अधेड़ धनाढ्य महिला पालकी में वहाँ आई। वसुमती के अद्भुत रूप को देखकर वह मुग्ध हो गई। यह छोकटी तो अपने कामकी है। कितनी सुन्दर है! मैं इसका पूरा मूल्य SOLAN देने को तैयार हूँ। ATE वसुमती ने उससे पूछा माताजी! आपके यहाँ मुझे क्या काम करना होगा? अरी बावली, मेरे यहाँ पुरुष स्त्री की गुलामी करते हैं। मेरे घर की नारियाँ सदा सुहागन रहती हैं। बड़े-बड़े धनी मानी तेरे चरणों में लोटेंगे। तू राज करेंगी। / Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | वसुमती ने कहा बस! बस ! मैं समझ गयी। मैं आपके साथ नहीं जाऊँगी। जिस इच्छा से आप मुझे खरीद रही हैं वह कार्य मैं स्वप्न में भी नहीं कर सकती। चलो ! ले चलो इसे... मैं पूरी कीमत देकर तुझे खरीद रही हूँ । तू मेरी गुलाम है राजकुमारी चन्दनबाला हे प्रभु! मेरे शीलधर्म की रक्षा करो। णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं वह भीड़ से बोली वह स्त्री नगर नायिका (वेश्या) थी। वह जबरदस्ती अपने दास दासियों की सहायता से वसुमती को ले जाने लगी। आप लोगों के सामने मैं इसका पूरा मूल्य दे कर खरीद रही हूँ। नियमानुसार इसे मेरे साथ जाना ही पड़ेगा। हाँ । हाँ । यह ठीक कह रही है। 50 वसुमती आँखें बंद कर णमोकार मन्त्र का स्मरण करने लगी। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला तभी अचानक चारों ओर से बंदरों ने नगर नायिका के सेवकों पर हमला कर दिया। वे घुर्र-घुर्र कर उन पर झपट पड़े। कुछ बंदर नगर नायिका को बुरी तरह काटने लगे। चारों ओर भगदड़ मच गयी। जिसे जहाँ जगह मिली भागा। णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं नगर नायिका बुरी तरह चीख रही थी। उसकी दुर्दशा देख वसुमती से रहा न गया। वह बंदरों को डांटते हुए बोली अरे बचाओ! कोई बचाओ मुझे ! यह क्या कर रहे हो कपिराज ! भागो! माताजी को मत काटो। बंदर जैसे वसुमती की भाषा समझ गये। वे तुरन्त भाग गये। वसुमती ने नगर नायिक को आगे बढ़कर सहारा दिया। उसके स्पर्श से ही नगर नायिका की आधी पीड़ा कम हो गयी।। बेटी । तुमने तो मुझे बचा लिया। 10 ओह! माताजी! मेरे कारण आपको कितनी तकलीफ हुई? Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला इतना सुनते ही नगर नायिका की आँखों से आँसू वसुमती ने कहालुढ़क पड़े। वह बोली मुझे क्षमा कर दे बेटी ! तू तो नारी नहीं, कोई देवी है? धिक्कार है मेरे जीवन को! आज तक मैंने पाप ही पाप किये हैं। आज से सदाचार का पालन करूंगी। दुःखी न होइए माताजी! जब (आँख खुले तभी सबेरा है। NE वसुमती ने उसे सदाचार का महत्व समझाया। |चबूतरे पर केवल सारथी और वसुमती रह गये। सारथी नगर नायिका अपनी दासियों के साथ वापिस चली | फिर से बोली-लगाने लगा। तभी उधर से नगर. श्रेष्ठी गयी। RAJ सेठ धनावाह निकले। वे बड़े सरल स्वभावी एवं धार्मिक माताजी ! प्रभु ने आपको प्रवृत्ति वाले थे। वसुमती को देख उनके मन में वात्सल्य सद्बुद्धि दी है, धन्य है। उमड़ पड़ा। उन्होंने वसुमती से पूछा बेटी ! तुम तो भले घर की लगती हो, यहाँ क्या कर रही हो? सेठजी ! मैं यहाँ बिकने के लिये आई हूँ। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला श्रेष्ठी धनावाह को यह सुनकर बड़ा दुख हुआ। उसने मन ही मन वसुमती को उस दास बाजार से | मुक्ति दिलाने का निश्चय कर लिया। वह बोला-1 (बेटी, तेरे बेचने वाले ने कितनी सौनेया मांगी हैं। सामना कोई बात नहीं । मैं एक लाख -दूँगा। तू मेरे घर पर सौनेया चल। वसुमती को सेठ सज्जन पुरुष लगे। किन्तु उसने |फिर भी पूछ लिया। वसुमती सेठ के उत्तर से संतुष्ट होकर उसके साथ चलने को तैयार हो गई। लो भाई तुम्हारी एक लाख सोनैया; आज से यह मेरी बेटी है। सेठ जी! आप मुझसे किस प्रकार का काम लेंगे? पुत्री! मैं वीतराग भगवान का उपासक हूँ। सदाचार मेरे घर का श्रृंगार है। मेरे घर के द्वार पर आया कोई अतिथि खाली न लौटे यही काम तुम्हें करना है। सेठजी ने सारथी को एक लाख सौनेया दे विदा किया और वसुमती को अपने साथ ले गये। 12 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला सेठ जी अपने घर पहुँचे। वहाँ सेठानी मूला ने जब सेठ जी को एक रूपवती स्त्री के साथ रथ से उतरते देखा तो वह चौंक गयी। उसने सेठ से प्रश्न किया यह लड़की कौन है ? आप इसे अपने साथ क्यों लाये हैं। वसुमती ने आगे बढ़कर सेठानी मूला को प्रणाम किया। ने अनमने मन से उसे आशीर्वाद दिया। मूला प्रिये! संतान न हो तो घर कितना सूना लगता है? आज मैं तुम्हारे लिए पुत्री लाया हूँ। यह लक्ष्मी रूपकन्या हमारे यहाँ खुशियाँ बरसाएगी। वसुमती ने शीघ्र ही अपनी चतुरता, सेवाभाव एवं मधुर व्यवहार से सेठ धनावाह एवं घर के सभी दास-दासियों का दिल जीत लिया। Tum 13 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला सेठमी वसुमती की कार्यकुशलता से बहुत प्रभावित | वसुमती ने कुछ देर सोच कर कहाहुए। एक दिन उन्होंने वसुमती से पूछा पिताजी ! मेरे दो नाम हैं। बेटी! तुझे यहाँ आए माता-पिता मुझे वसुमति कहते थे इतने दिन हो गये किन्तु तथा नाना चंदनबाला। आप चाहें मैं तेरा परिचय न जान सका।। मिस नाम से पुकार सकते हैं। तेरा नाम क्या है? सेठ जी बोले नाम सुन वसुमती अपने नाना की स्मृति में खो। गयी। उसे विचार मग्न देख सेठजी ने कहा बेटी! तेरा स्वभाव चंदन के समान शीतल है अतः मैं तेरा नाम चंदनबाला ही लूँगा। किस विचार में पड़ गयी बेटी? विचार में नहीं पिताजी । मैं अतीत की मधुर स्मृतियों में खो गयी थी। 14 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला वसुमती ने सेठ जी से कहा पिताजी ! इस नाम से मुझे प्रेरणा मिलती रहेगी। यही कि, कैसी भी विषम परिस्थिति हो, कितने भी संकट आए चन्दन के समान शीतल-शान्त बने रहो। कैसी प्रेरणा बेटी! तू धन्य है बेटी। जो नाम | में भी गुण खोज लेती है। उस दिन के बाद सभी लोग वसुमति को। चन्दनबाला के नाम से पुकारने लगे। चंदनबाला अतिथियों का विशेष सत्कार करती। शेष समय धार्मिक आराधना में मग्न रहती थी। धीरे-धीरे चारों ओर उसकी कीर्ति फैलने लगी इतनी अल्पायु में ऐसी धार्मिकता एवं विवेक सराहनीय है। यह किसी बड़े खानदान की लगती है। चन्दनाबाला की बढ़ती कीर्ति से सेठानी जल-भुन गई। यह सभी को अपने वश में कर लेगी और एक दिन इस घर की स्वामिनी बन बैठेगी तब मेरी दुर्दशा कर देगी। (इस काँटे को साफ करना चाहिए। वह चन्दनाबाला को नीचा दिखाने के लिये कोई योजना सोचने लगी। 15 in Education Intemational Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला आवाज सुनकर चंदनबाला तुरन्त एक लोटे में। पानी लेकर आई। एक दिन धनावाह सेठ थके हारे बाहर से आये। आते ही उन्होंने चन्दनबाला को आवाज लगाई। बेटी चंदना ! पाँव धोने के लिये पानी तो लाना। लाइये पिताजी ! मैं आपके पाँव धो दूँ। चंदनबाला सेवा भाव से सेठ के पैर धोने लगी। उसके बाल खुलकर मुँह पर आ गये। सेठ वात्सल्य पूर्वक मुँह पर से बाल हटाने लगा। तभी सेठानी मूला वहाँ से गुजरी उसने यह दृश्य देखकर गलत अर्थ लगाया। ओह ! तो यह प्रेमलीला चल रही है। इस पापिनी ने सेठ जी पर अपने रूप का जाल डाल दिया है। मुझे तुरन्त ही कोई उपाय करना पड़ेगा...वरना यह शीघ्र ही इस घर की मालकिन बन जायेगी। 16 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब सेठानी चंदनबाला के काम में कमियाँ निकालने लगी। दान करने पर भी उसे डाँटने लगी। कल तो घर में इतना आटा था ? कहाँ गया सब ? भिक्षुकों को दे दिया माताजी । एक बूढ़ी दासी से यह न देखा गया। वह सेठानी से बोली सेठानी जी! वह आपकी कितनी सेवा करती है। फिर भी आप उसी पर क्रोध करती रहती हैं। राजकुमारी चन्दनबाला तू मूर्ख है। अभी तक समझ नहीं पायी...... इसने सेठजी पर डोरे डाल रखे हैं। Ein Education International हाँ! हाँ क्यों नहीं? पराया माल जो है। खूब लुटा | दान पुण्य के बहाने घर लुटा रही है। कौड़ी-कौड़ी को मोहता कर देगी एक दिन । माताजी! आगे से ध्यान रखूँगी। अब कोई भूल नही होगी। अपना दोष न होते हुए भी चंदनबाला ने क्षमा माँग ली। क्षमा कीजिए सेठानी जी! सेठजी और चंदना धार्मिक प्रवृत्ति वाले पवित्र विचार के हैं। आप यह बुरे विचार अपनी मलिन बुद्धि से निकाल दीजिए। मुझे अक्ल सिखाती है। मेरी बुद्धि को मलिन कहती है। जा! निकल जा यहाँ से। 17 w Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला सेठानी की डांट खाकर दासी वहाँ से चली गयी। सेठानी सोचने लगी अब तो दासियाँ भी चंदना की तरफदारी करने लगी हैं। मुझे तुरन्त कोई उपाय करना होगा। अगले दिन प्रातः उठते ही चंदना ने सेठजी के लिए भोजन तैयार कर दिया। ब्रह्ममुहूर्त्त में सेठ ने प्रस्थान किया। पिताजी ! आप जल्दी आना मेरी दाँयीं आँख फड़क रही है। प्रभु कृपा से आपकी यात्रा मंगलमय हो । हूँ... अब देखती हूँ इसको..... वह सोचते हुए अपने कक्ष में पहुँची। तभी सेठजी ने आकर सेठानी से कहा प्रिये! मुझे दूसरे नगर जाना है। कल सुबह ही निकल जाऊँगा। तीन दिन तो लग ही जाएँगे। व्यापारिक कार्य है। 18 कब लौटेंगे? स्वामी ? सेठजी के जाने के बाद सेठानी ने अंदर आकर सभी नौकरों से कहा तुम लोग अवकाश माँग रहे थे न... अभी यहाँ कोई विशेष काम भी नहीं है अपने अपने घर हो आओ। सेठानी ने सब दास-दासियों को छुट्टी दे दी। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामकुमारी चन्दनबाला फिर वह सीधे चंदनबाला के कक्ष में गयी| सेठानी ने कहाऔर कड़े स्वर में उससे बोली मेरी बात का तू शैतान लड़की। बता तू साफसाफ उत्तर देती कौन है? तेरे है या नहीं.... माता-पिता कौन हैं? माताजी! मैं आपकी माताजी! आज आप कैसे पुत्री हूँ और आप मेरी प्रश्न कर रही हैं? माता हैं। मुझ पर शक न करें। Replet सेठानी यह उत्तर सुनकर सन्तुष्ट नहीं हुई। शक की बात करती है ठगिनि। तूने मेरे पति को ठग लिया। अपने जाल में फंसा लिया। मैं तुझे खूब पहचान गयी हूँ।। इतना सुनते ही सेठानी का क्रोध भड़क गया। वह बोली मैंने अपनी आँखों से मेरे स्वामी को तेरे बाल सहलाते हुए देखा है। बोल! क्या यह सच नहीं? माताजी | सच यह है कि मैं पिताजी के चरण धो रही थी उस समय मेरे केश खुले थे और बार-बार मुख पर आने से पैर धोने में बाधा आ रही थी। पिताजी ने मेरी परेशानी देख केश पकड़कर पीछे कर दिये थे। किन्तु सेठानी को उसकी बात पर विश्वास न हुआ। माताजी! हम पिता पुत्री के पवित्र संबंधों पर कीचड़ न उछालें। 19 Education International Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला उसने चंदनबाला को दंड देने की ठान ली। वह दूसरे चंदनबाला ने सहज भाव से कहाकमरे में जाकर कैंची उठा लाई और बोली माताजी! आपको जिस बात से तेरे इन केशों को मेरे पति ने संवारा भी प्रसन्नता मिले आप वही है न। मैं इन्हें काट दूंगी। फिर करें। मैं तैयार हूँ। देखती हूँ कैसे रीझते हैं वह इन पर। HT इस उत्तर से सेठानी बुरी तरह चिड़ गई। उसने || केश काटने के पश्चात् सेठानी ने व्यंग्य से कहाचंदना के बाल काटने शुरू कर दिये। चंदना शांत |भाव से बाल कटाते हुए सोचने लगी जा! अब तेरे सिर पर केश ही नहीं रहे। यदि इनको इसमें ही यह सुख मिलता है तो मेरा सौभाग्य है। माताजी! मैं तो खुश हूँ कि मेरे केश काटने से आपको संतोष मिला। सेठानी को ऐसे उत्तर की आशा न थी। DR.SURA 20 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामकुमारी चन्दनबाला उसने इसे चंदनबाला की ढिठाई समझा वह सीधी | | उसने चंदमा के हाथ-पैर सांखलों से बाँध दिये।। अंदर गयी और दो भारी-भारी सांकले और ताले ले आई और क्रूरता से हंसते हुए बोली अब मैं तुझे इन सांकलों में बाँधकर तहखाने में डाल दूंगी तब मुझे शांति मिलेगी। और उसे घसीटकर तहखाने की सीढ़ियों पर धकेल दिया और गुस्से से बोली-1 फिर ऊपर आकर तहखाने के द्वार पर ताला लगा दिया जा! अब यहीं तेरी समाधि बनेगी। अब किसी को पता भी नहीं चलेगा कि यह कहाँ गई। E JA SIS Education International Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला । इसके बाद कमरे में वापस आकर काफी सोचने पर भी कोई बहाना न सूझा तो वह सोचने लगा- मैंने इसे तलघर में डाल तो सेठानी ने निर्णय लिया-बाट दिया है पर यदि लोग इसके विषय में पूछेगे तो मैं अपने पीहर चली मैं क्या कहूँगी? जाती हूँ। न मैं यहाँ रहूँगी न कोई पूछेगा। यह विचार कर वह तुरन्त अपने पीहर चली गयी। इधर अपने साधना काल के बारहवें वर्ष में भगवान महावीर अपने आत्म कल्याण के साथ प्राणियों के कल्याण का भी चिन्तन कर रहे थे। भगवान् स्त्री जाति को दास प्रथा से मुक्त कराना चाहते थे इसी .. भावना से उन्होंने एक असम्भव सा लगने वाला अभिग्रह किया। मैं उसी कन्या के हाथों अन्न-जल ग्रहण करूँगा जो पवित्र जीवन जीने वाली राजकुमारी हो, बाजार में बिकी हुई हो, उसके हाथों में हथकड़ियाँ हों पाँवों में बैड़ियाँ हों, सिर मुंडा हो, तीन दिन की भूखी-प्यासी हो, कारागृह में बन्द रह चुकी हो, घर की देहली पर बैठी हो, एक पाँव देहली के अन्दर दूसरा बाहर हो, हाथ में सूप हो, सूप में उड़द के बाकले रखें हों, मुख पर हर्ष के भाव हों, लेकिन आँखों में आँसू हों। अभिग्रह की सब बातें मिलने पर ही अन्न ग्रहण करूंगा अन्यथा छह माह तक तप करूंगा। अभियह किसी को बताया नहीं माता यदि निमित्त मिल जाए और पूरा हो जाए तो ठीक अन्यथा साधक प्रतिज्ञा से विचलित नहीं होता। Education International Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला भगवान अभिग्रह ग्रहण करके अनेक ग्राम-नगरों में विहार करने लगे। भक्तगण भिक्षा देने के लिए उत्सुक रहते। भांति-भांति के पदार्थ लेने की प्रार्थना करते। किन्तु प्रभु बिना कुछ लिये ही आगे बढ़ जाते। DOE201 cation International प्रभु ! आहार ग्रहण कीजिए। Hom * भगवान विहार करते हुए कौशांबी नगरी में आ गये। वहाँ भी उन्होंने भिक्षा ग्रहण नहीं की। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि प्रभु क्या लेंगे। इस तरह विहार करते-करते उन्हें पाँच माह पच्चीस दिन हो गये। इधर नगरवासी प्रभु के अभिग्रह को जानने के लिए चिंतित थे। उधर चंदनबाला तलघर में बंधी आत्म-चिंतन कर रही थी। वह सोच रही थी मैंने पूर्व जन्म में जरूर माताजी को कष्ट दिया होगा, तभी तो उसका फल मुझे मिल रहा है। अब मैं शान्ति से यहाँ नवकार स्मरण करूँगी। इस तरह नवकार मंत्र का स्मरण करते और 'कर्मफल पर विचार करते हुए तीन दिन गुजर गये। 23 - 2 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला चौथे दिन धनावह सेठ वापिस आए। घर सूना देख वे चिंतित हो गये सेठानी कहाँ गयी? सब कहाँ हैं? चन्दना भी नहीं दीख रही ? आवाज लगाऊँ शायद कोई आ जाये। चंदना! बेटी चंदना! कहाँ हो तुम ? आवाज सुनते ही सेठजी ने तलघर का दरवाजा खोल कर चंदना को अंधकार से बाहर निकाला। उसकी 'दुर्दशा देख धनावह सेठ की आँखों में आँसू आ गये। जरूर उस अत्याचारिनी मूला की करतूत है तुझे जान से मारने के लिए तेरी यह दुर्दशा कर दी। सेठ जी की आवाज तलघर में बन्द चंदनबाला के कानों में पड़ी। उसने वापस आवाज दी।, पिताजी! मैं यहाँ तलघर में हूँ। चंदना ने सेठजी को समझाया 24 नहीं-नहीं पिताजी! माताजी को दोष न दें। यह सब मेरे ही कर्मों का दोष था। www.jalnelibrary.org Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला सेठ जी चन्दनबाला को सहारा देकर ऊपर ले आये। चन्दनबाला ने कहा पिताजी, बहुत भूख लगी है। कुछ खाने को दीजिये। तीन दिन से अन्न, जल देखा तक नहीं है। चन्दना के मन में भावना उंठी क्या बिना अतिथि को दिये खाना उचित होगा? मैं द्वार पर जाकर किसी अतिथि की प्रतीक्षा करती हूँ। सेठ जी उठे। उन्होंने देखा रसोईघर पर ताला लगा है। तभी उन्हें जानवरों के खाने के उड़द के बाकुले दीखे। बाकुलों के लिए बर्तन न मिलने पर वहीं टँगे सूप में बाकुलों को रखकर चन्दनबाला के पास आये। बेटी ये उड़द के सूखे बाकुले ही इस समय घर में पड़े हैं। तू इनसे अपनी भूख मिटा। तब तक में लुहार को बुलाकर लाता हूँ। यह कहकर वह चले गये। भूख-प्यास से दुर्बल हुई, जंजीरों में जकड़ी हुई काया को किसी प्रकार घसीटती हुई वह द्वार तक पहुँची। देहली पर पहुँचते-पहुँचते वह इतना थक गई कि एक ही पाँव बाहर रख सकी। दूसरा पाँव अन्दर रखकर वह उसी स्थिति में अतिथि के इन्तजार में बैठ गई। 25 Q JAW G 0 w Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला दिन का दूसरा प्रहर था। भगवान महावीर आहार गवेषणा हेतु निकले हुए थे। उन्हें देखते ही चंदना हर्ष विभोर हो गयी। सोचने लगी- - मेरा सद्भाग्य। श्रमण भगवंत महावीर मेरे हाथ से आहार ग्रहण करेंगे? भगवान महावीर ने चंदनबाला को देखा और पाया कि उनके अभिग्रह की सब बातें मिल रही हैं सिर्फ आँखों में आंसूओं की कमी है। अपूर्णता देख प्रभु वापिस लौटे। प्रभु का लौटना था कि चंदना की आँखों से आँसू बहने लगे। प्रभु ! एक आपका ही सहारा है। आप तो ऐसे मुँह-न मोड़ें। सच्ची पुकार से भगवान महावीर के पांव वापिस मुड़े। चंदनबाला पुनः हर्ष से भर गयी। आँखों से आँसू बह रहे थे। मुख पर हर्ष था। भगवान के अभिग्रह की सब बातें पूर्ण हो चुकी थीं। वे चंदनबाला की ओर बढ़े। - - 26 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला हर्ष वेग में भरकर चंदनबाला ने प्रभु के कर-पात्र में सारे बाकुले डाल दिये। प्रभु के आहार ग्रहण करते ही चंदना की बेड़ियाँ-हथकड़ियाँ स्वतः ही टूट कर गिर गयीं। आकाश से देव दुन्दुभि बजने लगी। अहोदानं-अहोदानं का दिव्य स्वर गूंज उठा। अहोदानं !अहोदाने!) प्रभु ने आहार SUATग्रहण कर लिया। गगना AA 27 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला इस महादान की महिमा करने के लिए देवराज इन्द्र अपने देव परिवार के साथ धरा पर आये। उनकी दिव्य शक्ति के प्रभाव से राजकुमारी चन्दनबाला का सौन्दर्य पहले से भी अधिक निखर उठा। देवराज ने चन्दनबाला का अभिवादन किया GODDA0.00 1200 60 000ரன். राजकुमारी ! आप अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं। आपके हाथों आज एक महान तपस्वी के दीर्घ तप का पारणा हुआ है। हम आपके इस महादान का अभिनन्दन करते हैं। चन्दनबाला हर्ष विभोर होकर बोली FUC आज मेरे जीवन का सर्वोत्तम दिन है। सचमुच प्रभु दीनबन्धु हैं। जिन्होंने मुझ पर इतनी कृपा की है। BRAR देवराज की आज्ञा से देवताओं ने स्वर्ण सिंहासन बनाकर चन्दनबाला को उस पर बिठाया और दान की महिमा गाने लगे। 28 27 Pool Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला इधर जैसे ही सेठानी मूला को यह समाचार ज्ञात हुआ उसे अपने किये पर पश्चात्ताप होने लगा। वह सोचने लगी वह तुरन्त अपने घर वापस आयी और चंदनबाला से क्षमा माँगने लगी। चंदनबाला ने कहामाताजी! मैं तो आपकी ऋणी रहूँगी। आपकी कृपा से ही तो मुझे भगवान के दर्शन हुए। आप ही के कारण मुझे भगवान का अभिग्रह पूर्ण करने का अवसर मिला। धिक्कार है मुझ पर! जो ऐसी महासती को मैंने घोर कष्ट दिये! मुझे उससे क्षमा मांगनी चाहिये। MERRORN । onicli बेटी! तू सचमुच चंदन समान है। फिर सेठानी ने अपने पति से भगवान के अभिग्रह पूर्ण होने की खबर राजमहल तक पहुँच गयी। क्षमा माँगी महाराज शतानीक को जैसे ही समाचार मिला वे प्रसन्न हो उठे और स्वामी! मुझे क्षमा कर । तुरन्त महारानी मृगावती को ले नगर श्रेष्ठी सेठ धनावह के घर की दो। मैंने बहुत पाप ओर चल दिये। किये हैं। मैं अपने "महारानी ! अपने नगर सेठ किये पर पछताती हूँ। धनावह की बेटी कितनी भाग्य सेठानी !अब चंदना शालिनी है, जिसके हाथों की तरह तुम भी भगवान महावीर का अभिग्रह सच्चे मन से धर्म पूर्ण हुआ....... का पालन करो। TAD TIATION 29 Jainelibrary.org Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला सेवकों ने राजा के लिये मार्ग बनाया। वे चंदनबाला के निकट पहुंचे। तभी भीड़ में से किसी ने कहा CIAS (अरे! यह चंदनबाला तो चंपा) नरेश रामा दधिवाहन की पुत्री वसुमति है। लगन्ध का वसन्त LETTES जैसे ही ये शब्द रानी मृगावती ने सुने उसने | ध्यान से चंदनबाला को देखा। फिर मुड़कर राजा शतानीक से बोली स्वामी! यह तो मेरी बहन धारणी की पुत्री है। स्वामी! आपको चंपा पर चढ़ाई करने से कितना रोका था मैंने! किन्तु आप न माने। देखा आपकी चंपा की लूट का परिणाम कितना भयंकर हुआ। मेरी बहन की पुत्री को कितने कष्ट उठाने पड़े। विवश यह सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ। iex 30 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला राजा ने चंदनबाला से क्षमा मांगते हुए कहा बेटी! मेरे कारण तुम्हें अत्यन्त कष्ट उठाने पड़े। मेरे अपराधों को क्षमाकर हमारे साथ महल • में चलने की कृपा करो। चंदनबाला ने साथ जाने से इंकार कर दिया। राजा-रानी के बहुत आग्रह करने पर चंदनबाला बोली घोर विपत्ति के समय में सेठ जी ने मुझे पुत्री मानकर सहारा दिया है। इनका उपकार मैं कैसे भूल सकती हूँ। इसलिए जब तक मुझे यहाँ रहना है मैं इनकी छत्रछाया में ही रहूँगी। SIDEO पन्न यह सुनकर सेठ की आंखें नम हो गईं। वह भावुक स्वर में बोलाक्या कह रही है बेटी । तेरे चरण पड़ने से मेरा घर भी पवित्र हो गया। तेरे पुण्यों से ही प्रभु वर्द्धमान के चरणों से यह भूमि पवित्र हुई है। | रानी मृगावती और राजा शतानीक चन्दनबाला को अपने साथ ले आये। चन्दना के कहने पर राजा दधिवाहन की खोज की गई परन्तु कहीं पता नहीं चला। चन्दनबाला भगवान महावीर के तीर्थ प्रवर्तन की प्रतीक्षा कर रही थी। वह शुभ दिन कब आयेगा, Room जब मैं दीक्षा लेकर अपना कल्याण करूंगी। Poscope 20000OR KOS JODY PRINNN GOO राजा ने धनावह सेठ से चन्दनबाला को अपने साथ ले | जाने के लिये निवेदन किया। धनावह सेठ ने चन्दनबाला को समझाकर राजा शतानीक के साथ भेज दिया। IKCOM 31 alon International Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमारी चन्दनबाला एक दिन रानी मृगावती की दासी ने आकर शुभ तभी दो देवता विमान लेकर उपस्थित हुएसूचना दी राजकुमारी ! आपकी मनोकामना पूर्ण करने के लिए राजकुमारी सुना आपने ? भगवान महावीर को || देवराज इन्द्र ने विमान भेजा है। चलिये पावापुरी में केवलज्ञान प्राप्त हो गया। पावापुरी के उद्यान में भगवान महावीर का समवसरण लगा है। भगवान का समवसरण लगा है। मेरी मनोभावना पूर्ण होने का समय आ गया है। अब मैं शीघ्र ही प्रभु के चरणों में पहुंचकर दीक्षा ग्रहण ___कर अपना जीवन सफल बना लूँ...... ति DOODCOM 0.0.0.0.50.COMEOS हर्ष में भाव-विभोर होकर चन्दनबाला विमान में बैठकर भगवान महावीर के समवसरण में पहुंची। प्रभु मैं आपके चरणों में आई हूँ मुझे दीक्षा प्रदान कर मेरा उद्धार कीजिये। SMA रा INI.STAN इस समवसरण में चन्दनबाला सहित सैंकड़ों महिलाओं तथा इन्द्रभूति आदि अनेक विद्वानों ने प्रभु के चरणों में दीक्षा ग्रहण की। भगवान ने चार तीर्थ की स्थापना की। चन्दनबाला भगवान महावीर के श्रमणी संघ की नायिका बनी और संसार को नारी जाति के कल्याण का मार्ग दिखाया। समाप्त For Private 32.rsonal Use Only www.jainelibrary.co Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बात आपसे भी............ सम्माननीय बन्धु, सादर जय जिनेन्द्र ! जैन साहित्य में संसार की श्रेष्ठ कहानियों का अक्षय भण्डार भरा है। नीति, उपदेश, वैराग्य, बुद्धिचातुर्य, वीरता, साहस, मैत्री, सरलता, क्षमाशीलता आदि विषयों पर लिखी गई हजारों सुन्दर, शिक्षाप्रद, रोचक कहानियों में से चुन-चुनकर सरल भाषा-शैली में भावपूर्ण रंगीन चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक छोटा-सा प्रयास हमने गत चार वर्षों से प्रारम्भ किया है। अब यह चित्रकथा अपने छटवें वर्ष में पदापर्ण करने जा रही है। इन चित्रकथाओं के माध्यम से आपका मनोरंजन तो होगा ही, साथ ही जैन इतिहास संस्कृति, धर्म, दर्शन और जैन जीवन मूल्यों से भी आपका सीधा सम्पर्क होगा। हमें विश्वास है कि इस तरह की चित्रकथायें आप निरन्तर प्राप्त करना चाहेंगे। अतः आप इस पत्र के साथ छपे सदस्यता पत्र पर अपना पूरा नाम, पता साफ-साफ लिखकर भेज दें। नोट- वार्षिक सदस्यता फार्म पीछे है। आप इसके तीन वर्षीय (33 पुस्तकें), पाँच वर्षीय (55 पुस्तकें) व दस वर्षीय (108 पुस्तकें) सदस्य बन सकते हैं। OM आप पीछे छपा फार्म भरकर भेज दें। फार्म व ड्राफ्ट/एम. ओ. प्राप्त होते ही हम आपको रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा अब तक छपे अंक तुरन्त भेज देंगे तथा शेष अंक (आपकी सदस्यता के अनुसार) जैसे-जैसे प्रकाशित होते जायेंगे, डाक द्वारा हम आपको भेजते रहेंगे। धन्यवाद ! पुस्तक का नाम सचित्र भक्तामर स्तोत्र सचित्र णमोकार महामंत्र सचित्र तीर्थंकर चरित्र सचित्र कल्पसूत्र मूल्य 325.00 125.00 200.00 500.00 SHREE DIWAKAR PRAKASHAN A-7, AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M. G. ROAD, AGRA-282002 PH. : 0562-2151165 हमारे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सचित्र भावपूर्ण प्रकाशन सर्वसिद्धिदायक णमोकार मंत्र चित्र भक्तामर स्तोत्र यंत्र चित्र श्री वर्द्धमान शलाका यंत्र चित्र श्री सिद्धिचक्र यंत्र चित्र ● फ्र पुस्तक का नाम सचित्र ज्ञातासूत्र (भाग-1, 2) सचित्र दशवैकालिक सूत्र सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र packag FISK 19575 मूल्य 1,000.00 500.00 500.00 500.00 चित्रपट एवं यंत्र चित्र 25.00 25.00 15.00 20.00 आपका संजय सुराना प्रबन्ध सम्पादक श्री गौतम शलाका यंत्र चित्र श्री सर्वतोभद्र तिजय पहुत्त यंत्र चित्र श्री घंटाकरण यंत्र चित्र श्री ऋषिमण्डल यंत्र चित्र पुस्तक का नाम भक्तामर स्तोत्र (जेबी गुटका) सचित्र मंगल माला सचित्र भावना आनुपूर्वी सचित्र पार्श्वकल्याण कल्पतरू मूल्य 20.00 20.00 21.00 30.00 15.00 10.00 25.00 20.00 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वार्षिकसदस्यता फार्म मान्यवर, मैं आपके द्वारा प्रकाशित चित्रकथा का सदस्य बनना चाहता हूँ। कृपया मुझे निम्नलिखित वर्षों के लिए सदस्यता प्रदान करें। (कृपया बॉक्स पर का निशान लगायें) सदस्यता शुल्क डाकखर्च कुल राशि तीन वर्ष के लिये अंक 34 से 66 तक (33 पुस्तकें) 540/- 100 640 पाँच वर्ष के लिये अंक 12 से 66 तक (55 पुस्तकें) 900/- 150 1,50 दस वर्ष के लिये अंक 1 से 108 तक (108 पुस्तकें) 1,800/ 400 2,200 मैं शुल्क की राशि एम. ओ. ड्राफ्ट द्वारा भेज रहा हूँ। मुझे नियमित चित्रकथा भेजने का कष्ट करें। नाम (Name) (in capital letters)पता (Address). - पिन (Pin) .Amount M.O./D.D.No. .Bank. हस्ताक्षर (Sign.) नोट-. यदि आपको अंक 1 से चित्रकथायें मंगानी हो तो कृपया इस लाईन के सामने हस्ताक्षर करें कृपया चैक के साथ 25/- रुपये अधिक जोड़कर भेजें। पिन कोड अवश्य लिखें। • तीन तथा पाँच वर्षीय सदस्य को उनकी सदस्यतानुसार प्रकाशित अंक एकसाथ भेजे जायेंगे। चैक/ड्राफ्ट/एम.ओ. निम्न पते पर भेजें SHREE DIWAKAR PRAKASHAN A-7, AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M. G. ROAD, AGRA-282 002. PH. : 0562-21511651 दिवाकर चित्रकथा की प्रमुख कड़ियाँ 1. क्षमादान 16. राजकुमार श्रेणिक 30. तृष्णा का जाल 2. भगवान ऋषभदेव 17. भगवान मल्लीनाथ 31. पाँच रत्न 3. णमोकार मन्त्र के चमत्कार 18. महासती अंजना सुन्दरी 32. अमृत पुरुष गौतम 4. चिन्तामणि पार्श्वनाथ 19. करनी का फल (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) 33. आर्य सुधर्मा 5. भगवान महावीर की बोध कथायें 20. भगवान नेमिनाथ 34. पुणिया श्रावक 6. बुद्धि निधान अभय कुमार 21. भाग्य का खेल 35. छोटी-सी बात 7. शान्ति अवतार शान्तिनाथ 22. करकण्डू जाग गया (प्रत्येक बुद्ध) 36. भरत चक्रवर्ती 8. किस्मत का धनी धन्ना 23. जगत् गुरु हीरविजय सूरी 37. सद्दाल पुत्र 9-10 करुणा निधान भ. महावीर (भाग-1.2) 24. वचन का तीर 38. रूप का गर्व 11. राजकुमारी चन्दनबाला 25. अजात शत्रु कूणिक 39. उदयन और वासवदत्ता 12. सती मदनरेखा 26. पिंजरे का पंछी 40. कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य 13. सिद्ध चक्र का चमत्कार 27. धरती पर स्वर्ग 41. कुमारपाल और हेमचन्द्राचार्य 14. मेघकुमार की आत्मकथा 28. नन्द मणिकार (अन्त मति सो गति) 42. दादा गुरुदेव जिनकुशल सूरी 15. युवायोगी जम्बूकुमार 29. कर भला हो भला 43.श्रीमद राजचन्द्र Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ContITTER-MAS20ना एकसौआठहाथी तर्कों से तो तथ्य का, लगता कब अन्दाज। दंग रहे नृप देखकर, अष्टोत्तर गजराज।। जोधपुर दरबार, मानसिंह ने कहा-"जैन लोग कहते हैं, पानी की एक बूंद में अनगिनत जीव हैं, यह कैसे हो सकता है ?' इसके उत्तर में मुनि जीतमलजी ने एक कागज का टुकड़ा, चने की दाल जितना लिया। उसमें एक सौ आठ हाथियों के चित्र बनाये, जो कि अम्बारी सहित अलग-अलग बहत ही अच्छे ढंग से बनाये गये थे। वह अदभूत चित्र दरबार को ले जाकर दिखाया। बात का भेद खोलते हुए मुनिजी ने कहा-"मैं कोई चित्रकला का पारंगत नहीं हूँ। जब मैंने एक सौ आठ हाथी बनाये हैं, बहुत सम्भव है कोई मेरे से अधिक कुशल एक सौ आठ की जगह एक हजार आठ भी बना सकता है। भला जब कृत्रिम चीज बनी हुई चीज ऐसे बन सकती है, तब प्राकृतिक के विषय में अविश्वास जैसी चीज ही क्या है ?" सारे सभासद मुनिजी को, शतशत साधुवाद देते हुए गुनगुना रहे थे चिणा जितरी दाल में, नहीं कुछ बाधरु घाट। शंका हुवै तो देखल्यो, हाथी एक सौ आठ।। क्या डॉ.सा. झूठ बोलते हैं ? सन्नारी हो जिस जगह, घर है स्वर्ग समान। ऐसी कुलटा से रखें सदा दूर भगवान।। एक सेठ की पत्नी सूर्पणखा की बहिन-सी थी। इसी घरेलू चिन्ता से सेठजी की चिता की राह पकड़ने जैसी स्थिति हो गई। उन्हें बहुत बीमार सुनकर एक निकट का सम्बन्धी एक अच्छे से डॉक्टर को ले आया। सेठजी के होश-हवास प्रायः लुप्त थे। डॉक्टर ने देखकर कहा-"यह तो मर गया।" ____ पास खड़ी सेठानी तो यह चाहती ही थी कि कब यह मरे। पर सेठ ने जब डॉक्टर का कथन सुना तो अपने हाथ की अंगुली हिलाकर संकेत किया कि “मैं मरा नहीं।" सेठानी यह देखकर सेठजी को झिड़कती-सी बोली-"क्या इतने बड़े डॉक्टर झूठ बोलते हैं ? यह कहते हैं कि मर गया, तो आप मर ही गये। बोलो मत, चुप रहो। थोड़ी बहुत भी शर्म नहीं आती। इतना तो सोचना चाहिए कि ये बिचारे डॉक्टर क्यों झूठ बोलेंगे।" तुम कहते मैं ना मरा, पर कुछ करो विचार । डॉक्टरजी क्या बोलते, झूठ अरे बदकार।। TOTOD T ETTORE DONAAD Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर भगवान यमदेब जैनधर्म के प्रसिद्ध विषयों पर आधारित रंगीन सचित्र कथाएं: दिवाकर चित्रकथा जैनधर्म, संस्कृति, इतिहास और आचार-विचार से सीधा सम्पर्क बनाने का एक सरलतम, सहज माध्यम। मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्द्धक, संस्कार-शोधक, रोचक सचित्र कहानियाँ। 55 पुस्तकों के सैट का मूल्य 1100.00 रुपया। 33 पुस्तकों के सैट का मूल्य : 640.00 रुपया। प्रत्येक पुस्तक का मूल्य : 20/1. क्षमादान 2. भगवान ऋषभदेव 3. णमोकार मन्त्र के चमत्कार 4. चिन्तामणि पार्श्वनाथ 5 भगवान महावीर की बोध कथायें 6. बुद्धिनिधान अभयकुमार 7. शान्ति अवतार शान्तिनाथ 8. किस्मत का धनी धन्ना 6-10. करुणानिधान भगवान महावीर 11. राजकुमारी चन्दनबाला 12. सती मदनरेखा 13. सिद्धचक्र का चमत्कार 14. मेघकुमार की आत्मकथा 15. युवायोगी जम्बुकुमार 16. राजकुमार श्रेणिक 17. भगवान मल्लीनाथ 18. महासती अंजनासुन्दरी 16. करनी का फल (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) 20. भगवान नेमिनाथ 21. भाग्य का खेल 22. करकण्डू जाग गया 23. जगत् गुरु हीरविजय सूरि 24. वचन का तीर 25. अजातशत्रु कूणिक 26. पिंजरे का पंछी 27. धरती पर स्वर्ग 28. नन्द मणिकार 26. कर भला हो भला 30. तृष्णा का फल 31. पाँच रत्न अक्षयवस्तार .मोकारभरके चमत्कार Chiાવિઝાકિયા चित्रकथाएँ मँगाने के लिए अंदर दिये गये सदस्यता फॉर्म को भरकर भेजें।