SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजकुमारी चन्दनबाला उसने चंदनबाला को दंड देने की ठान ली। वह दूसरे चंदनबाला ने सहज भाव से कहाकमरे में जाकर कैंची उठा लाई और बोली माताजी! आपको जिस बात से तेरे इन केशों को मेरे पति ने संवारा भी प्रसन्नता मिले आप वही है न। मैं इन्हें काट दूंगी। फिर करें। मैं तैयार हूँ। देखती हूँ कैसे रीझते हैं वह इन पर। HT इस उत्तर से सेठानी बुरी तरह चिड़ गई। उसने || केश काटने के पश्चात् सेठानी ने व्यंग्य से कहाचंदना के बाल काटने शुरू कर दिये। चंदना शांत |भाव से बाल कटाते हुए सोचने लगी जा! अब तेरे सिर पर केश ही नहीं रहे। यदि इनको इसमें ही यह सुख मिलता है तो मेरा सौभाग्य है। माताजी! मैं तो खुश हूँ कि मेरे केश काटने से आपको संतोष मिला। सेठानी को ऐसे उत्तर की आशा न थी। DR.SURA 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002810
Book TitleRajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaritashree Sadhvi, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy