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राजकुमारी चन्दनबाला उसके बाद उन्होंने जंगल से सूखी लकड़ियां सारथी वसुमती को लेकर रथ में सवार हो इकट्ठी कर महारानी का अंतिम संस्कार किया। अपने घर कौशाम्बी की ओर चल दिया। रास्ते
में वसुमती ने सारथी से कहा
पिताजी! आपसे एक विनती है। कि वहाँ पर किसी को मेरा
असली परिचय न दें।
सारथी जैसे ही अपने घर पहुंचा उसकी पत्नी । इतना सुनते ही सारथी की पत्नी गुस्से से फट पड़ीबाहर आई। उसने वसुमती को अपने पति के
जितने भी सैनिक गये थे सब साथ देखा तो कहा
माला-माल होकर लौटे हैं। आप कौन है यह? आपके
कितना धन लेकर आए हैं? साथ क्यों आई है?
मैं सिवाय पुत्री के कुछ भी धन नहीं लाया हूँ।
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अपनी कोई संतान
न थी अतः इसे अपनी पुत्री बनाकर
लाया हूँ।
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