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________________ राजकुमारी चन्दनबाला भगवान अभिग्रह ग्रहण करके अनेक ग्राम-नगरों में विहार करने लगे। भक्तगण भिक्षा देने के लिए उत्सुक रहते। भांति-भांति के पदार्थ लेने की प्रार्थना करते। किन्तु प्रभु बिना कुछ लिये ही आगे बढ़ जाते। DOE201 cation International प्रभु ! आहार ग्रहण कीजिए। Hom * भगवान विहार करते हुए कौशांबी नगरी में आ गये। वहाँ भी उन्होंने भिक्षा ग्रहण नहीं की। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि प्रभु क्या लेंगे। इस तरह विहार करते-करते उन्हें पाँच माह पच्चीस दिन हो गये। इधर नगरवासी प्रभु के अभिग्रह को जानने के लिए चिंतित थे। उधर चंदनबाला तलघर में बंधी आत्म-चिंतन कर रही थी। वह सोच रही थी मैंने पूर्व जन्म में जरूर माताजी को कष्ट दिया होगा, तभी तो उसका फल मुझे मिल रहा है। अब मैं शान्ति से यहाँ नवकार स्मरण करूँगी। इस तरह नवकार मंत्र का स्मरण करते और 'कर्मफल पर विचार करते हुए तीन दिन गुजर गये। 23 -For Private & Personal Use Only 2 www.jainelibrary.org
SR No.002810
Book TitleRajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaritashree Sadhvi, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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