Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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ContITTER-MAS20ना
एकसौआठहाथी
तर्कों से तो तथ्य का, लगता कब अन्दाज।
दंग रहे नृप देखकर, अष्टोत्तर गजराज।। जोधपुर दरबार, मानसिंह ने कहा-"जैन लोग कहते हैं, पानी की एक बूंद में अनगिनत जीव हैं, यह कैसे हो सकता है ?'
इसके उत्तर में मुनि जीतमलजी ने एक कागज का टुकड़ा, चने की दाल जितना लिया। उसमें एक सौ आठ हाथियों के चित्र बनाये, जो कि अम्बारी सहित अलग-अलग बहत ही अच्छे ढंग से बनाये गये थे। वह अदभूत चित्र दरबार को ले जाकर दिखाया। बात का भेद खोलते हुए मुनिजी ने कहा-"मैं कोई चित्रकला का पारंगत नहीं हूँ। जब मैंने एक सौ आठ हाथी बनाये हैं, बहुत सम्भव है कोई मेरे से अधिक कुशल एक सौ आठ की जगह एक हजार आठ भी बना सकता है। भला जब कृत्रिम चीज बनी हुई चीज ऐसे बन सकती है, तब प्राकृतिक के विषय में अविश्वास जैसी चीज ही क्या है ?" सारे सभासद मुनिजी को, शतशत साधुवाद देते हुए गुनगुना रहे थे
चिणा जितरी दाल में, नहीं कुछ बाधरु घाट। शंका हुवै तो देखल्यो, हाथी एक सौ आठ।।
क्या डॉ.सा. झूठ बोलते हैं ?
सन्नारी हो जिस जगह, घर है स्वर्ग समान।
ऐसी कुलटा से रखें सदा दूर भगवान।। एक सेठ की पत्नी सूर्पणखा की बहिन-सी थी। इसी घरेलू चिन्ता से सेठजी की चिता की राह पकड़ने जैसी स्थिति हो गई। उन्हें बहुत बीमार सुनकर एक निकट का सम्बन्धी एक अच्छे से डॉक्टर को ले आया। सेठजी के होश-हवास प्रायः लुप्त थे। डॉक्टर ने देखकर कहा-"यह तो मर गया।" ____ पास खड़ी सेठानी तो यह चाहती ही थी कि कब यह मरे। पर सेठ ने जब डॉक्टर का कथन सुना तो अपने हाथ की अंगुली हिलाकर संकेत किया कि “मैं मरा नहीं।"
सेठानी यह देखकर सेठजी को झिड़कती-सी बोली-"क्या इतने बड़े डॉक्टर झूठ बोलते हैं ? यह कहते हैं कि मर गया, तो आप मर ही गये। बोलो मत, चुप रहो। थोड़ी बहुत भी शर्म नहीं आती। इतना तो सोचना चाहिए कि ये बिचारे डॉक्टर क्यों झूठ बोलेंगे।"
तुम कहते मैं ना मरा, पर कुछ करो विचार । डॉक्टरजी क्या बोलते, झूठ अरे बदकार।।
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