Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree  Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 28
________________ राजकुमारी चन्दनबाला दिन का दूसरा प्रहर था। भगवान महावीर आहार गवेषणा हेतु निकले हुए थे। उन्हें देखते ही चंदना हर्ष विभोर हो गयी। सोचने लगी- - मेरा सद्भाग्य। श्रमण भगवंत महावीर मेरे हाथ से आहार ग्रहण करेंगे? भगवान महावीर ने चंदनबाला को देखा और पाया कि उनके अभिग्रह की सब बातें मिल रही हैं सिर्फ आँखों में आंसूओं की कमी है। अपूर्णता देख प्रभु वापिस लौटे। प्रभु का लौटना था कि चंदना की आँखों से आँसू बहने लगे। प्रभु ! एक आपका ही सहारा है। आप तो ऐसे मुँह-न मोड़ें। सच्ची पुकार से भगवान महावीर के पांव वापिस मुड़े। चंदनबाला पुनः हर्ष से भर गयी। आँखों से आँसू बह रहे थे। मुख पर हर्ष था। भगवान के अभिग्रह की सब बातें पूर्ण हो चुकी थीं। वे चंदनबाला की ओर बढ़े। - - Jain Education International 26 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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