Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree  Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 31
________________ राजकुमारी चन्दनबाला इधर जैसे ही सेठानी मूला को यह समाचार ज्ञात हुआ उसे अपने किये पर पश्चात्ताप होने लगा। वह सोचने लगी वह तुरन्त अपने घर वापस आयी और चंदनबाला से क्षमा माँगने लगी। चंदनबाला ने कहामाताजी! मैं तो आपकी ऋणी रहूँगी। आपकी कृपा से ही तो मुझे भगवान के दर्शन हुए। आप ही के कारण मुझे भगवान का अभिग्रह पूर्ण करने का अवसर मिला। धिक्कार है मुझ पर! जो ऐसी महासती को मैंने घोर कष्ट दिये! मुझे उससे क्षमा मांगनी चाहिये। MERRORN । onicli बेटी! तू सचमुच चंदन समान है। फिर सेठानी ने अपने पति से भगवान के अभिग्रह पूर्ण होने की खबर राजमहल तक पहुँच गयी। क्षमा माँगी महाराज शतानीक को जैसे ही समाचार मिला वे प्रसन्न हो उठे और स्वामी! मुझे क्षमा कर । तुरन्त महारानी मृगावती को ले नगर श्रेष्ठी सेठ धनावह के घर की दो। मैंने बहुत पाप ओर चल दिये। किये हैं। मैं अपने "महारानी ! अपने नगर सेठ किये पर पछताती हूँ। धनावह की बेटी कितनी भाग्य सेठानी !अब चंदना शालिनी है, जिसके हाथों की तरह तुम भी भगवान महावीर का अभिग्रह सच्चे मन से धर्म पूर्ण हुआ....... का पालन करो। TAD TIATION 29 Jainelibrary.org

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