Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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राजकुमारी चन्दनबाला
राजा ने चंदनबाला से क्षमा मांगते हुए कहा
बेटी! मेरे कारण तुम्हें अत्यन्त कष्ट उठाने पड़े। मेरे अपराधों को क्षमाकर हमारे साथ महल • में चलने की कृपा करो।
चंदनबाला ने साथ जाने से इंकार कर दिया। राजा-रानी के बहुत आग्रह करने पर चंदनबाला बोली
घोर विपत्ति के समय में सेठ जी ने मुझे पुत्री मानकर सहारा दिया है। इनका उपकार मैं कैसे भूल सकती हूँ। इसलिए जब तक मुझे यहाँ रहना है मैं इनकी छत्रछाया में ही रहूँगी।
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यह सुनकर सेठ की आंखें नम हो गईं। वह भावुक स्वर में बोलाक्या कह रही है बेटी । तेरे चरण पड़ने से मेरा
घर भी पवित्र हो गया। तेरे पुण्यों से ही प्रभु वर्द्धमान के चरणों से यह भूमि पवित्र हुई है।
| रानी मृगावती और राजा शतानीक चन्दनबाला को अपने साथ ले आये। चन्दना के कहने पर राजा दधिवाहन की खोज की गई परन्तु कहीं पता नहीं चला। चन्दनबाला भगवान महावीर के तीर्थ प्रवर्तन की प्रतीक्षा कर रही थी।
वह शुभ दिन कब आयेगा, Room जब मैं दीक्षा लेकर
अपना कल्याण
करूंगी।
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राजा ने धनावह सेठ से चन्दनबाला को अपने साथ ले | जाने के लिये निवेदन किया। धनावह सेठ ने चन्दनबाला को समझाकर राजा शतानीक के साथ भेज दिया।
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