Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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राजकुमारी चन्दनबाला चौथे दिन धनावह सेठ वापिस आए। घर सूना देख वे चिंतित हो गये
सेठानी कहाँ गयी? सब कहाँ हैं? चन्दना भी नहीं दीख रही ? आवाज लगाऊँ शायद कोई आ जाये।
चंदना! बेटी चंदना! कहाँ हो तुम ?
आवाज सुनते ही सेठजी ने तलघर का दरवाजा खोल कर चंदना को अंधकार से बाहर निकाला। उसकी 'दुर्दशा देख धनावह सेठ की आँखों में आँसू आ गये।
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जरूर उस अत्याचारिनी
मूला की करतूत है तुझे जान से मारने के लिए तेरी यह दुर्दशा कर दी।
सेठ जी की आवाज तलघर में बन्द चंदनबाला के कानों में पड़ी। उसने वापस आवाज दी।,
पिताजी! मैं यहाँ तलघर में हूँ।
चंदना ने सेठजी को समझाया
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नहीं-नहीं पिताजी! माताजी को दोष न दें। यह सब मेरे ही कर्मों का दोष था।
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