Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011 Author(s): Saritashree Sadhvi, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 10
________________ यामकुमारी चन्दनबाला सारथी राजकुमारी वसुमती को लेकर दास बाजार में पहुंचा जहाँ गुलामों की खरीद-बिक्री होती थी। एक चबूतरे पर खड़ा होकर उसकी बोली लगाने लगा सज्जनो! यह सुन्दर दासी म बिकने के लिए आई है। इसका जगार मूल्य है एक लाख सौनेया! - मूल्य सुनकर लोगों को आश्चर्य हुआ। तभी एक अधेड़ धनाढ्य महिला पालकी में वहाँ आई। वसुमती के अद्भुत रूप को देखकर वह मुग्ध हो गई। यह छोकटी तो अपने कामकी है। कितनी सुन्दर है! मैं इसका पूरा मूल्य SOLAN देने को तैयार हूँ। ATE वसुमती ने उससे पूछा माताजी! आपके यहाँ मुझे क्या काम करना होगा? अरी बावली, मेरे यहाँ पुरुष स्त्री की गुलामी करते हैं। मेरे घर की नारियाँ सदा सुहागन रहती हैं। बड़े-बड़े धनी मानी तेरे चरणों में लोटेंगे। तू राज करेंगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/Page Navigation
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